पाकिस्तान में भी बेशुमार बांके बिहारी की संपत्ति, मुस्लिम नवाब के दान में देने की पूरी कहानी

Banke Bihari's immense wealth in Pakistan too, full story of Muslim Nawab donating it

मथुरा/उत्तर प्रदेश। जन-जन के आराध्य ठाकुर बांके बिहारी की वैसे तो करोड़ों भक्त हैं। बिहारी जी का एक भक्त ऐसा भी था, जो पाकिस्तान का नवाब होते हुए उन्होंने बिहारी जी के नाम बेशुमार संपत्ति दान की। आज भी पाकिस्तान में बिहारी जी के नाम पर दान की गई संपत्ति मौजूद है। बताया गया है कि इस संपत्ति को पाकिस्तान के एक नवाब ने दान किया था।
नवाब अशराफियां खां ने दान किये थे पांच गांव
बांकेबिहारी महाराज और उनके प्राकट्यकर्ता स्वामी हरिदासजी के वंशजों की बेशुमार संपत्तियां देश के अनेक शहरों के साथ-साथ पाकिस्तान में भी मौजूद हैं। ये संपत्तियां न सिर्फ हिंदू राजाओं ने बल्कि कई मुस्लिम नवाबों द्वारा भी दी गईं हैं। तत्कालीन शर्की शासक हुसैन शाह ने मुल्तान (अब पाकिस्तान) में पांच गांव का पट्टा गजाधरजी को भेंट करते हुए राधामाधव मंदिर की स्थापना कराई थी, जिसमें विराजमान ठाकुरजी को मुल्तान बिहारी नाम दिया गया।
बांके बिहारी मंदिर के सेवायत एवं इतिहासकार प्रहलाद बल्लभ गोस्वामी के अनुसार वर्ष 1525 में अलीगढ़ (हरिगढ़) के तत्कालीन नवाब अशराफियां खां ने अपने पुत्र को प्राण दान देने पर हरिदास जी की सेवार्थ पांच गांव दान में दिए थे, जिनमें शामिल स्वामीजी की जन्म स्थली आज भी हरिदासपुर के नाम से जानी जाती है।
आशुधीरजी के साथ मुल्तान से आए ठाकुर राधामाधव अभी भी अलीगढ़ के ऊपरकोट मोहल्ले में विराजमान हैं। उन्होंने बताया कि बांकेबिहारी महाराज का प्राकट्य होने के बाद जयपुर के महाराजा सवाई मानसिंह प्रथम ने लगभग तीन एकड़ भूमि ठाकुरजी की सेवा के लिए दान की थी, जो अब निधिवनराज के नाम से प्रसिद्ध है।
सन् 1598 में जारी किए अपने फरमान में मुगल शासक अकबर ने स्वामी हरिदासजी की सेवा के लिए 25 बीघा भूमि वृंदावन के दुसायत मोहल्ले तथा राधाकुंड में दान की। राधाकुंड की उसी भूमि के एक हिस्से पर वर्तमान में बांके बिहारी जी का मंदिर बना हुआ है। उन्होंने बताया कि बांके बिहारी जी की सेवार्थ जयपुर के महाराजा सवाई ईश्वरी सिंह ने वृंदावन के दुसायत मोहल्ले में वर्ष 1748 में 1.15 एकड़ भूमि दान में दी। करौली रियासत ने वृंदावन में स्थित मोहनबाग, भरतपुर रियासत ने सतीहरिमतिजी और रूपानंदजी के समाधि स्थल, किशोरपुरा भूखंड एवं रामनिवास ने अपना भवन ठाकुरजी की सेवा के लिए दान किया। ये सभी संपत्तियां वर्तमान में भी बांकेबिहारी मंदिर के अधिकार क्षेत्र में हैं।
1957 में प्रकाशित श्रीस्वामी हरिदास अभिनंदन ग्रंथ में उल्लेख
बांकेबिहारी मंदिर प्रबंध कमेटी द्वारा वर्ष 1957 में प्रकाशित श्रीस्वामी हरिदास अभिनंदन ग्रंथ में उल्लेख है कि ठाकुर बांकेबिहारी के प्राकट्यकर्ता हरिदासजी के पितामह गजाधर महाराज ने वर्ष 1485 में मुल्तान (अब पाकिस्तान) के तत्कालीन शर्की शासक हुसैन शाह द्वारा मारे गए शेर को जीवित कर दिया था।
इस चमत्कार से प्रभावित होकर हुसैन शाह ने पांच गांव का पट्टा गजाधरजी को भेंट करते हुए राधामाधव मंदिर की स्थापना कराई थी। 1507 में गजाधरजी और उनके पुत्र आशुधीरजी बृज की सीमा पर स्थित कोल (अलीगढ़) में आकर बस गए थे। यहीं पर 30 दिसंबर सन् 1512 में स्वामी हरिदास का जन्म हुआ। उनके अनुज जगन्नाथ और गोविंद का जन्म भी यहीं हुआ था।

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