एक ऐसा कानून जिसने इतिहास के पन्नों को शर्मसार किया! स्तन ढकने पर दलित महिलाओं को चुकाना पड़ता था टैक्स

स्तन के आकार पर भरना पड़ता था टैक्स,विरोध पर काट देते थे स्तन

आजादी के पहले, हमारे देश में कई अमानवीय कानून थे जो समाज के एक बड़े हिस्से को कुचलने का काम करते थे। इनमें से एक कानून इतना क्रूर था कि सुनकर रूह कांप उठती है। इस कानून के मुताबिक, दलित जाति की महिलाओं को अपनी आजादी का मूल्य चुकाना पड़ता था और वो भी अपनी इज्जत के बदले! जी हां, उन्हें सिर्फ इसलिए टैक्स देना होता था कि वो अपने शरीर के ऊपरी हिस्से यानी स्तन को ढक सकें। अगर कोई महिला इस अन्याय के खिलाफ आवाज उठाती, तो उसे सजा का सामना करना पड़ता था। आइए, आज हम आपको बताएंगे कि ये कानून कहां लागू था और कैसे महिलाओं ने मिलकर इस अत्याचार के खिलाफ एक लंबी लड़ाई लड़ी।
स्तन ढकने पर देना होता था टैक्स
केरल के त्रावणकोर में सदियों पहले, दलित जाति की महिलाओं को ‘मुलक्करम’ नामक एक अत्यंत अपमानजनक टैक्स चुकाना पड़ता था। अगर कोई अधिकारी या ब्राह्मण उनके सामने आता था, तो उन्हें या तो अपनी छाती से वस्त्र हटाने पड़ते थे, या फिर अपनी छाती ढकने के लिए एक टैक्स देना पड़ता था। इस अमानवीय नियम का पालन सार्वजनिक स्थानों पर अनिवार्य था। बता दें, इस टैक्स को बहुत कठोरता से वसूला जाता था। बाद में, व्यापक विरोध के कारण और अंग्रेजों के दबाव में, यह क्रूर प्रथा समाप्त की गई।
स्तन के आकार पर भरना पड़ता था टैक्स
मद्रास कुरियर नामक समाचार पत्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, त्रावणकोर राज्य में निचली जाति की महिलाओं पर अत्याचार की हदें पार कर दी गई थीं। इन महिलाओं को अपनी छाती ढकने के लिए एक कर देना पड़ता था और यह कर महिलाओं के स्तन के आकार के आधार पर तय किया जाता था। यह अमानवीय नियम त्रावणकोर के राजा के आदेश पर लागू किया गया था और इसे उसके सलाहकारों का पूरा समर्थन प्राप्त था।
यह भी पढ़ें- क्या आप भारत की पहली महिला वकील को जानते हैं, जिन्हें महिला होने के कारण नहीं मिल पाई थी स्कॉलरशिप
विरोध पर काट देते थे स्तन
ब्रेस्ट टैक्स का विरोध करने वाली महिलाओं को अमानवीय यातनाएं दी जाती थीं। नांगेली नाम की एक दलित महिला ने इस अत्याचार का विरोध किया तो उसे मौत के घाट उतार दिया गया। बता दें, उसके स्तनों को काट देने की क्रूरता ने पूरे समाज को हिलाकर रख दिया था। नांगेली की शहादत ने दलितों को एकजुट कर दिया और उन्होंने इस अमानवीय प्रथा के खिलाफ आवाज उठानी शुरू कर दी। इस आंदोलन में कई ईसाई महिलाओं ने भी हिस्सा लिया और अंग्रेजों और मिशनरियों से मदद मांगी। अंततः अंग्रेजी शासन के दबाव में त्रावणकोर को यह क्रूर कानून रद्द करना पड़ा।
महिलाओं के पहनावे पर अमानवीय प्रतिबंध
दीवान जर्मनी दास ने अपनी पुस्तक ‘महारानी’ में उल्लेख किया है कि त्रावणकोर के शासनकाल में, केरल के एक हिस्से में रहने वाली महिलाओं को अपने पहनावे के बारे में कड़े नियमों का पालन करना पड़ता था। ये नियम इतने सख्त थे कि किसी के कपड़ों को देखकर उसकी जाति का अंदाजा लगाया जा सकता था।
एजवा, शेनार या शनारस, नाडार जैसी जातियों की महिलाओं को अपनी छाती पूरी तरह से खुली रखनी होती थी। अगर कोई महिला इन नियमों का पालन नहीं करती थी, तो उसे राज्य को जुर्माना देना पड़ता था। यह एक ऐसा समय था जब महिलाओं को अपनी पसंद से कपड़े पहनने का अधिकार नहीं था। उन्हें समाज द्वारा निर्धारित मानकों के अनुसार ही जीना पड़ता था।
125 साल तक चला अत्याचार
जानकारी के मुताबिक, टैक्स लेने की प्रथा को बंद कर दिया गया था, लेकिन स्तन ढंकने पर प्रतिबंध लगा रहना एक क्रूर मजाक-सा था। यह कुप्रथा लगभग 125 साल तक चलती रही। त्रावणकोर की रानी तक इस अमानवीय व्यवस्था को सही मानती थीं। अंग्रेज गवर्नर चार्ल्स ट्रेवेलियन ने 1859 में इसे खत्म करने का आदेश दिया, फिर भी यह जारी रहा। ऐसे में, नाडार महिलाओं ने उच्च वर्ग की तरह कपड़े पहनकर विरोध किया। आखिरकार, 1865 में सभी को ऊपरी वस्त्र पहनने की आजादी मिली। दीवान जर्मनी दास की पुस्तक “महारानी” में इस कुप्रथा का विस्तृत विवरण मिलता है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button