यमुना दिल्ली में आईसीयू में

यमुना नदी दिल्ली की आत्मा है। दिल्ली के भौगोलिक स्थान और यमुना नदी के तटीय मार्ग राजाओं के लिए महत्वपूर्ण थे, क्योंकि इस नदी ने साम्राज्यों के लिए एक महत्वपूर्ण व्यापार मार्ग और राज्य की दैनिक आवश्यकताओं को पूरा करने वाली नदी के रूप में काम किया था। दिल्ली कभी यमुना नदी के किनारे-किनारे सुनियोजित थी, लेकिन अब ऐसा नहीं है। इतिहास बताता है कि दिल्ली में कई बार शहर बसे और छोड़े गए। दिल्ली की प्रमुख नदी उसकी 18 सहायक नदियाँ और लगभग 800 बड़े या छोटे तालाब और झीलें दिल्ली में एक छोर से दूसरे छोर तक फैली हुई थी। अंग्रेजी शासकों ने अपनी राजधानी दिल्ली में स्थानांतरित करने का फैसला किया। नई दिल्ली के निर्माण से पहले, लुटियंस ने हाथी पर सवार होकर भूमि का सर्वेक्षण किया। एक कहानी है कि आज जहां इंडिया इंटरनेशनल सेंटर और लोधी गार्डन हैं, वहां से एक खूबसूरत नदी बहती है। नदी को पार करने के लिए एक पत्थर का पुल भी था। यह नदी सफदरजंग के मकबरे के आस-पास से आती थी, जहाँ आज खान मार्केट है, वहाँ से गुज़रती थी और यमुना से मिलने से पहले पुराना किला की खाई को भरती थी। वे कौन से दबाव थे, जिन्होंने दिल्ली को अपनी नदियों को भूलने, उन्हें नक्शे से मिटाने या उन्हें सीवर में बदलने पर मजबूर कर दिया?

जब से भारत औद्योगिक विकास के पथ पर अग्रसर हुआ है, तब से दिल्ली शहर को लोगों द्वारा अपने मूल स्थान से दिल्ली जाकर नौकरियों की तलाश करने और रहने की स्थिति में सुधार के अवसर प्राप्त करने के कारण भारी जनसमूह का सामना करना पड़ा है, जिसका यमुना नदी पर काफी प्रभाव पड़ा है, क्योंकि नदी को क्षेत्र के बदलते जनसांख्यिकीय के अनुकूल होना पड़ा और साथ ही यह नदी वहाँ की आबादी की दैनिक आवश्यकताओं के लिए पानी का भी एक प्रमुख स्रोत थी। भारत में औद्योगिक विकास की अवधि में यमुना नदी में होने वाला नुकसान उच्च स्तर पर देखा गया है, क्योंकि अनुपचारित या आंशिक रूप से उपयोग में लाया जाने वाला पानी तथा घरेलू और औद्योगिक गंदा मल-जल नालियों के माध्यम से नदी में प्रवाहित कर दिया जाता है। इस प्रकार, हानिकारक प्रदूषक और भारी धातु जैसे कैडमियम, निकल और सीसा, जो कि नदी में अपर्याप्त रूप से मौजूद हैं, नदी में पहुँच जाते हैं, जबकि नदी के पानी में जस्ता और आयरन आमतौर पर मौजूद होते हैं। अब नदी के किनारों पर स्टेडियम, सचिवालय और बड़े-बड़े मंदिर हैं । कभी यह दिल्ली यमुना के कारण बसी थी। आज यमुना का भविष्य दिल्ली के हाथ उजड़ रहा है।

दिल्ली की बढ़ती आबादी और अव्यवस्थित शहरीकरण का दबाव यमुना नदी पर भारी पड़ रहा है। नदी में कचरे का प्रवाह लगातार बढ़ रहा है, जिसके गंभीर परिणाम सामने आ रहे हैं। यद्यपि दिल्ली में एसटीपी (सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट) की संख्या देश में सबसे अधिक है, और सभी कालोनियों में सीवर लाइन बिछाने का प्रयास किया जा रहा है, यह नदी के प्रदूषण को रोकने के लिए पर्याप्त नहीं है। यमुना तभी साफ होगी, जब उसके प्राकृतिक बहाव को सुनिश्चित किया जाएगा।

1857 के गदर के ठीक पहले की दिल्ली, एक सुंदर, व्यवस्थित शहर के हर गुण देखे जा सकते हैं। फिर दिल्ली उजड़ कर इसी के किनारे कहीं और आगे-पीछे क्यों नहीं बसाई गई? शायद इसका एक बड़ा कारण पूरब में बहने वाली नदी के इस हिस्से के ठीक सामने कुछ करोड़ साल से खड़ी अरावली भी है। ये शहर के उत्तरी कोने से दक्षिणी कोने तक शहर को कुछ इस तरह से सुरक्षा देती है जैसी सुरक्षा इस हिस्से के अलावा यमुना के किसी और हिस्से में नहीं मिलती। इस अरावली से छोटी-छोटी अठारह नदियां पूरी दिल्ली को उत्तर से दक्षिण में काटते हुए यमुना में आकर मिलती थीं। इसलिए दिल्ली को सिर्फ इस दिल्ली में ही बार-बार उजड़ कर बसना था। इस तरह देखें तो हम कह सकते हैं कि यमुना दिल्ली की सबसे बड़ी ‘टाउन प्लेनर’ है।

हौज़-ए-शम्सी कोई 800 साल पुराना यह सुंदर तालाब इतना बड़ा था कि इब्न-ए-बतूता इसका आकार देख कर चकित रह गए थे। बरसात का मौसम बीतते ही तालाबों में जमा वर्षा का पानी धीरे-धीरे दिल्ली के भूजल का स्तर अगली गर्मी तक ऊंचा उठाए रखता था। इस पूरी सोची समझी पानी की नीली व्यवस्था में थोड़ा हरा रंग भी मिला दें। दिल्ली में चारों तरफ बहुत बड़े-बड़े आकार के बाग-बगीचे और अरावली तक छाए घने जंगल बचाकर, पालकर रखे गए थे। दिल्ली के मोहल्लों के नाम या मेट्रो के स्टेशनों के नाम एक बार मन में दोहरा लें तो अनेक बागों का चित्र सामने आ जाएगा। इसमें ऐसे भी बाग थे। जिन्हें हम आज किसी मोती के नाम पर जानते हैं लेकिन उसी मोहल्ले में थोड़ी धूल झाड़िए तो पता चलेगा कि उसे किसी मोची ने बड़े प्यार से बनाया था। फिर दिल्ली को अंग्रेजों ने राजधानी बनाना तय किया। रायसीना हिल्स पर आज खड़ी राज करने वाली इमारतों को बनाने से पहले यहां का सर्वे करने ल्युटिन्स को हाथी पर चढ़ कर घूमना पड़ा था क्योंकि तब इस इलाके में घास का एक बड़ा जंगल था और उसकी ऊंचाई अंग्रेज आर्किटेक्ट से कम नहीं थी। आज के इंडिया इंटर नेशनल सेंटर और लोदी गार्डन के पास से एक सुंदर नदी बहती थी। इसके उस पार जाने के लिए पत्थरों का एक सुंदर और मजबूत पुल भी बना था। नदी कहीं सफदरजंग मकबरे की तरफ से आते हुए खान मार्केट के सामने होकर पुराना किले की खाई को भरते हुए यमुना से गले मिलती थी। दिल्ली ने पिछले सौ सालों में अपनी ऐसी कुछ नदियों को न जाने किस मजबूरी में नक्शों से हटा दिया है और जो बची रह गई हैं उन्हें पूरी तरह से गंदे नालों में बदल दिया है। अठपुला के नीचे से निकल कर यह नदी पुराना किला तक यहीं से बहती थी। आज नदी बहती तो खान मार्केट के बगल से होकर गुजरती।

आज यमुना का भविष्य दिल्ली के हाथ उजड़ रहा है। शहर के तालाब मिटा दीजिए। शहर के भीतर बहने वाली नदियां पाटकर उन पर सड़कें बना दीजिए। फिर जो पानी गिरेगा वह और उसमें नदी की बाढ़ से आने वाला पानी और जोड़ लीजिए-दुखद चित्र पूरा हो जाता है। तब ऐसी मुसीबतों को प्राकृतिक आपदा कहना एक बड़ा धोखा होगा। हमारे शहरी नियोजक ऐसी बातों पर भी विचार करें और इस चिंता में समाज और राज को शामिल करें तो नदियों के किनारे बसे दिल्ली जैसे शहर आबाद बने रहेंगे।

दिल्ली में हर साल अचानक घोषणा होती है कि एक-दो दिन नलों में पानी नहीं आएगा। कारण यमुना में अमोनिया की मात्रा बढ़ गई। हर साल गरमी होते ही हरियाणा और दिल्ली सरकार सुप्रीम कोर्ट में खड़े मिलते हैं ताकि यमुना से अधिक पानी पा सकें। इसका असली कारण यही है कि हरियाणा से दिल्ली में प्रवेश कर रही यमुना इतनी जहरीली हो जाती है कि वजीराबाद व चंद्रावल के जल परिशोधन संयंत्र की ताकत उन्हें साफ कर पीने लायक बनाने काबिल नहीं रह जाती। हरियाणा के पानीपत के पास ड्रेन नंबर-दो के माध्यम से यमुना में औद्योगिक कचरा गिराया जाता है। इस वजह से यमुना में अमोनिया की मात्रा बढ़ी आती है। पानी में अमोनिया की मात्रा इतनी अधिक होने पर जल शोधन संयंत्रों में उसे शोधित करने की क्षमता नहीं है, इसलिए जलबोर्ड यमुना से पानी लेना बंद कर देता है और इस तरह जहरीली यमुना का जल घरों तक पहुँचने लायक नहीं रह जाता। सन् 2021 के छठ पर्व का चित्र तो सारी दुनिया में चर्चित हुआ था जिसमें सफेद झाग से लबालब यमुना में महिलाएँ अर्घ्य दे रही थीं। यमुना की पावन धारा दिल्ली में आकर एक नाला बन जाती है। आँकड़ों और कागजों पर तो इस नदी की हालत सुधारने को इतना पैसा खर्च हो चुका है कि यदि उसका ईमानदारी से इस्तेमाल किया जाता तो उससे एक समानातर धारा की खुदाई हो सकती थी। ओखला में तो यमुना नदी में बीओडी स्तर सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय स्तर से 40-48 गुना ज्यादा है। पेस्टीसाइड्स और लोहा, जिंक आदि धातुएँ भी नदी में पाई गई है। एम्स के फोरेंसिक विभाग के अनुसार, 2004 में 0.08 मि.ग्रा. आर्सेनिक की मात्रा पाई गई जो वास्तव में 0.01 मि.ग्रा. होनी चाहिए।

पर्यावरणविद पंकज चतुर्वेदी बताते है की एक सपना था कि कामनवेल्थ खेलों यानी अक्तूबर-2010 तक लंदन की टेम्स नदी की ही तरह देश की राजधानी दिल्ली में वजीराबाद से लेकर ओखला तक शानदार लैंडस्केप, बगीचे होंगे, नीला जल कल-कल कर बहता होगा, पक्षियों और मछलियों की रिहाइश होगी, लेकिन अब सरकार ने भी हाथ खड़े कर दिए हैं। दावा है कि यमुना साफ तो होगी, लेकिन समय लगेगा। कॉमनवेल्थ खेल तो बदबू मारती, कचरे व सीवर के पानी से लवरेज यमुना के तट पर ही संपन्न हो गए। याद करें 10 अप्रैल, 2001 को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि 31 मार्च, 2003 तक यमुना को दिल्ली में न्यूनतम जल गुणवत्ता प्राप्त कर ली जानी चाहिए, ताकि यमुना को ‘मैली’ न कहा जा सके, पर उस समय-सीमा के 19 साल के बाद भी दिल्ली क्षेत्र में बहने वाली नदी में ऑक्सीजन का नामोनिशान ही नहीं रह गया है, यानी पूरा पानी जहरीला हो चुका है और यमुना मर चुकी है।

दिल्ली में यमुना का सिर्फ 2 फीसदी हिस्सा लेकिन प्रदूषण 76 फीसदी
जिस यमुना नदी का पानी दिल्ली में दाखिल होते वक्त साफ होता है, वो दिल्ली में घुसने के बाद मैली और जहरीली होने लगती है. दोनों जगह का फर्क साफ-साफ देखा जा सकता है कि चंद किलोमीटर बहने के बाद दिल्ली में यमुना नदी नाले में तब्दील हो जाती है. दिल्ली में यमुना किनारे 65,000 झुग्गियां हैं, जिनमें करीब 4 लाख की आबादी रहती है. यमुना में 600 टन कचरा मिलता है। यमुना इस संघर्ष भरे सफर में दिल्ली में 48 कि.मी. बहती है। यह नदी की कुल लंबाई का महज दो फीसदी है, जबकि इसे प्रदूषित करने वाले कुल गंदे पानी का 71 प्रतिशत और बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड यानी बीओडी का 55 प्रतिशत यहीं से इसमें घुलता है। अनुमान है कि दिल्ली में हर रोज 3297 एमएलडी गंदा पानी और 132 टन बीओडी यमुना में घुलता है। दिल्ली की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर कही जाने वाली यमुना का राजधानी में प्रवेश उत्तर में बसे पल्ला गाँव से होता है। पल्ला में नदी का प्रदूषण का स्तर ‘ए’ होता है, लेकिन यही उच्च गुणवत्ता का पानी जब दूसरे छोर जैतपुर पहुँचता है तो ‘ई’ श्रेणी का हो जाता है। सनद रहे कि इस स्तर का पानी मवेशियों के लिए भी अनुपयुक्त कहलाता है। हिमालय के यमुनोत्री ग्लेशियर से निर्मल जल के साथ आने वाली यमुना की असली दुर्गति दिल्ली में वजीराबाद बाँध को पार करते ही होने लगती है। इसका पहला सामना होता है नजफगढ़ नाले से, जो कि 38 शहरी व चार देहाती नालों की गंदगी अपने में समेटे वजीराबाद पुल के पास यमुना में मिलता है। इस पानी को साफ करने के लिए सभी नालों पर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाया जाना था, लेकिन ऐसा हुआ नहीं है. यही वजह है कि सभी नालों का प्रदूषित पानी यमुना नदी में गिरकर उसे जहरीला बना रहा है इसके अलावा दिल्ली महानगर की कोई डेढ़ करोड़ आबादी का मल-मूत्र व अन्य गंदगी लिए 21 नाले यमुना में मिलते हैं, उनमें प्रमुख हैं-मैगजीन रोड, स्वीयर कॉलोनी, खैबर पास, मेटॉफ हाउस, कुदेसिया बाग, यमुनापार नगर घीय नाला, मोरोगेट, सिविल मिल, पावर हाउस, सैनी नर्सिंग होम, नाला नं. 14. बारापुला नाला, महारानी बाग, कालकाजी और तुगलकाबाद नाला। इसके बाद आगरा के चमड़ा कारखाने व मथुरा के रंगाई कारखानों का जहर भी इसमें घुलता है।

दिल्ली में केवल तीन साल में 2018 से 2021 तक नदी की हालत सुधारने के लिए दो सौ करोड़ का खर्चा हुआ, लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा। वैसे यमुना खादर के भूजल की जाँच बीते 25 सालों में हुई ही नहीं और जान लें कि यहाँ का भूजल भी बीमारी बाँटने में पीछे नहीं है। यमुना के किनारे खादर का लगभग 9.700 हेक्टेयर इलाका हुआ करता था, उसमें से आज 3,600 हेक्टेयर पर अवैध बस्तियाँ बस गई हैं। कई जगह सरकार ने भी यमुना जल ग्रहण क्षेत्र में निर्माण किए हैं।

8 साल में यमुना प्रदूषण का स्तर दोगुना
दिल्ली में यमुना नदी की सफाई को लेकर भले ही लाख दावे किए जाते हों, लेकिन हकीकत कुछ और ही है। यमुना के पानी की गुणवत्ता की निगरानी करने वाली दिल्ली सरकार की एजेंसी दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण कमेटी (डीपीसीसी) रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि यमुना नदी में बीते 8 साल में प्रदूषण का स्तर दोगुना हो गया है. एनजीटी ने कहा रिपोर्ट में चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं. जिनमें कहा गया है कि बीते 8 साल में यमुना में प्रदूषण दोगुना हुआ है. दिल्ली के उपराज्यपाल को 14 जनवरी 2023 को कमेटी ने जानकारी दी कि पल्ला इलाक़ा से यमुना हरियाणा से दिल्ली में प्रवेश करती है. उस जगह पर साल 2014 से लेकर आजतक बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड का स्तर मात्र दो एमजी प्रति लीटर बना हुआ है, लेकिन ओखला बैराज के उस हिस्से पर जहाँ से यमुना दिल्ली को छोड़कर यूपी की तरह बढ़ती है, उस जगह बीओडी लेवल बढ़कर 56 एमजी प्रति लीटर पहुँच गया है. जबकि आठ साल पहले यह 32 एमजी लीटर था. जानकारी के अनुसार, बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड पानी की गुणवत्ता का आंकलन करने के लिए एक महत्वपर्ण पैरामीटर है. जल निकाय में मौजूद सूक्ष्मजीवों द्वारा कार्बनिक पदार्थों को डिकम्पोज़ करने के लिए पानी में ऑक्सीजन की मात्रा होती है. बीओडी का स्तर 3 मिलीग्राम प्रति लीटर (mg/l) से कम ठीक माना जाता है. उपराज्यपाल को दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति और जल बोर्ड की ओर से मिली जानकारी के मुताबिक़, शाहदरा ड्रेन और नजफगढ़ ड्रेन यमुना में होने वाले प्रदूषण की मुख्य वजह मानी गई है. इसके अलावा 35 में से सिर्फ़ 9 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट ही तय मानकों के हिसाब से चल रहे हैं.

यमुना अपनी जिंदगी की आखिरी सांस ले रही है। बरसात के दिनों को छोड़ दें तो दिल्ली में तो यमुना में पानी नजर ही नहीं आता। यमुना नदी देश की सबसे प्रदूषित नदियों में शामिल है और दिल्ली में नाला बनकर बह रही है। वास्तव में दिल्ली से गुजरते हुए इसमें केवल गंदगी ही बहती हुई मिलती है। इस गंदगी का परिणाम यह है कि नदी में ऑक्सीजन नाम मात्र को भी नहीं रह गई है, जिसके कारण यमुना में रहने वाले जीव-जंतु समाप्त होते जा रहे हैं। इस नदी से उठने वाली सड़ांध से इसे पार कर आने-जाने वाले तो फटाफट भागते हैं, लेकिन मामला तो और भी गंभीर है।

पर्यावरण से जुड़ी एजेंसी का दावा है कि यमुना किनारे उगाई जा रही सब्जियां तक जहरीली हो चुकी हैं और इसके किनारे पर रहने वालों में भी विभिन्न प्रकार की गंभीर बीमारियां घर कर रही हैं। यदि यमुना को बचाना है तो इसके उद्धार के लिए मिल रहे सरकारी पैसों का इस्तेमाल ईमानदारी से करना जरूरी है, वरना यह याद रखना जरूरी है कि मानव सभ्यता का अस्तित्व नदियों का सहयात्री है और इसी पर निर्भर है। जल जीवन का आधार है, वह दिल्ली की जनता के कैंसर, साँस की बीमारी, त्वचा रोग जैसे मौत के कारकों का वितरण केंद्र बना हुआ है। इस पर जमी जलकुंभी की परत क्युलेक्स मच्छर का आसरा है और तभी दिल्ली में मच्छरजनित रोग-मलेरिया, चिकनगुनिया, डेंगू का स्थायी डेरा रहता है। आई.टी.ओ. पुल, कुदेसिया घाट, महारानी बाग, जोगाबाई, आली गाँव, शाहीन बाग आदि यमुना से उपजे मच्छरों से बीमार होते रहते हैं।

लेखक- प्रवीण पांडेय(केंद्रीय अध्यक्ष बुंदेलखंड राष्ट्र समिति)

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