दारुल उलूम देवबंद ने गजवा-ए-हिंद के समर्थन में फतवा जारी कर भारत के संविधान को दी सीधी चुनौती !

Darul Uloom Deoband issued a fatwa in support of Ghazwa-e-Hind and gave a direct challenge to the Constitution of India!

भारत में मजहब के नाम पर किस कदर पोंगापंथी लोग कोहराम मचाकर खुश होते हैं इसकी ताजा मिसाल उत्तर प्रदेश के देवबंद में स्थित दारुल उलूम है। हम आपको बता दें कि फतवों की दुकान चलाने वाले इस संस्थान ने अब जो फतवा जारी किया है उसमें ‘गजवा-ए-हिंद’ की बात कही गयी है। देखा जाये तो ‘गजवा-ए-हिंद’ “भारत पर आक्रमण के संदर्भ में शहादत” का महिमामंडन करता है। इसलिए सवाल उठता है कि दारुल उलूम भारत पर आक्रमण के लिए अपने छात्रों को क्यों उकसा रहा है? भारत को इस्लामिक देश में परिवर्तित करने के लिए पीएफआई और सिमी जैसे प्रतिबंधित संगठन जहां छिप कर मिशन 2047 चलाते हैं तो वहीं दारुल उलूम तो खुलकर ‘गजवा-ए-हिंद’ की बात कर रहा है। यह भी आश्चर्यजनक है कि अब तक सुनने में आता था कि आतंकवादियों की ओर से गजवा-ए-हिंद अभियान चलाया जा रहा है लेकिन अब खुद को शिक्षण संस्थान बताने वाले दारुल उलूम ने ही गजवा-ए-हिंद के समर्थन में फतवा जारी कर दिया है।
हम आपको बता दें कि यह वही दारुल उलूम है जहां अक्सर पड़ने वाले छापों के दौरान छात्र आतंकी या देश विरोधी गतिविधियों में लिप्त पाये जाते हैं। यह देश का एकमात्र ऐसा तथाकथित शिक्षण संस्थान है जहां से पढ़ाई करने वाले छात्रों ने आतंकवाद को अपना कॅरियर बनाया। इसलिए इस संस्थान पर सुरक्षा एजेंसियों की निगाह लगी रहती है। हालिया वर्षों की ही बात करें तो 10 से ज्यादा ऐसे आतंकवादी पकड़े गये हैं जिन्होंने देवबंद से शिक्षा हासिल की थी। मार्च 2019 में यहां से एटीएस ने जैश-ए-मोहम्मद के आतंकवादी शहनाज तेली और आकिब अहमद मलिक को गिरफ्तार किया था तो इस संस्थान की बड़ी बदनामी हुई थी। बताया गया था कि जैश के इन दोनों आतंकवादियों का पुलवामा हमला मामले से कनेक्शन था। यही कारण है कि देवबंद पर एनआईए और एटीएस की नजर बनी रहती है। उत्तर प्रदेश सरकार ने तो देवबंद में एटीएस केंद्र की स्थापना भी कर दी है ताकि इस क्षेत्र पर सघन नजर बनी रहे। हम आपको बता दें कि घनी मुस्लिम आबादी वाले देवबंद में दारुल उलूम के अलावा सौ से ज्यादा छोटे-बड़े मदरसे हैं। पाकिस्तानी आतंकवादी संगठनों जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा, हिज्बुल मुजाहिदीन और इंडियन मुजाहिदीन आदि के स्लीपर सेल इस इलाके में माने जाते थे लेकिन पिछले कुछ वर्षों में आतंकवाद के खिलाफ बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करने की नीति के चलते आतंकवादियों, स्लीपर सेलों के सदस्यों और पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के लिए काम करने वालों की कमर पूरी तरह टूट चुकी है।
देवबंद के मुल्ला-मौलवी वैसे तो अक्सर विवादित फतवे जारी करते हैं लेकिन इस बार उन्होंने जो किया है वह सीधे-सीधे देश के संविधान को चुनौती है। इसलिए कानून को चाहिए कि वह उसे चुनौती देने वाले को कतई ना बख्शे। देखा जाये तो देवबंद के मुल्ला-मौलवियों का हमेशा यही प्रयास रहता है कि भारतीय इस्लाम कभी उदार ना दिखे। यही कारण है कि जब अफगानिस्तान के लोकतंत्र को कुचल कर तालिबान ने सत्ता हथियाई तो दारुल उलूम ने खुशी जताई। यही कारण है कि जब कोई मुस्लिम महिला शिव भक्ति के गीत गा दे तो दारुल उलूम ने उसके खिलाफ फतवा जारी करने में देर नहीं लगाई। देखा जाये तो हिंदुस्तान में गजवा-ए-हिंद का सपना पालने वालों से कभी भी देश प्रेम की उम्मीद नहीं की जा सकती है क्योंकि यह तो सिर्फ शासन चाहते हैं। इसके लिए प्रयास हो भी रहे हैं। वर्तमान में धर्मांतरण व लव जिहाद की घटनाएं उसी अभियान का हिस्सा हैं और गजवा-ए-हिन्द का सपना देखने वाले लोग जी-जान से उस मुहिम में लगे दिखाई दे रहे हैं। जो जिहादी ‘गजवा-ए-हिन्द’ यानि पूरे भारत को दीन के अधीन लाने के मुगालते में हैं उन्हें देखना चाहिए कि भारत एकमात्र ऐसा देश है, जिसमें मुसलमानों की जनसंख्या कई मुस्लिम राष्ट्रों से ज्यादा है। इन कट्टरपंथियों को देखना चाहिए कि हमारे यहां का मुसलमान अन्य देशों की तुलना में ज्यादा सुरक्षित और संरक्षित है। ऐसा इसलिए है क्योंकि यहां का शासन किसी संप्रदाय विशेष की पुस्तक के अनुसार नहीं, बल्कि भारत के संविधान के हिसाब से चलता है।
बहरहाल, इसमें कोई दो राय नहीं कि दारुल उलूम देवबंद की वेबसाइट पर उपलब्ध फतवा बच्चों में अपने ही देश के खिलाफ नफरत की भावना को पनपा रहा है। ऐसी सामग्री से राष्ट्र के खिलाफ नफरत भड़क सकती है। इसलिए सरकार को इस मामले में जल्द से जल्द कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए।
लेखक -नीरज कुमार दुबे

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