एक चाबी से कैसे ओपन हुआ 1993 बम ब्लास्ट का केस, मुंबई पुलिस के पूर्व कमिश्नर राकेश मारिया ने बताई पूरी कहानी

How a key opened the 1993 bomb blast case, former Mumbai Police Commissioner Rakesh Maria told the whole story

मुंबई डेस्क। 12 मार्च, 1993 के मुंबई ब्लास्ट में 257 लोगों की जान गई थी और 713 लोग घायल हुए थे। उस दिन देश की आर्थिक राजधानी में 12 जगह बम धमाके हुए थे, लेकिन कई ऐसी भी जगह थीं, जहां बम रखे तो गए थे, पर उनसे ब्लास्ट नहीं हुआ था। ऐसी ही एक जगह थी दादर में नायगांव क्रास रोड पर एक डॉक्टर की क्लीनिक। 12 मार्च को अलग-अलग जगह हुए ब्लास्ट की वजह से पूरे शहर में दहशत थी। बहुत से लोगों ने उस दिन अपनी दुकानें, ऑफिस, क्लीनिक बंद कर दी थीं। दादर के संबंधित डॉक्टर ने 13 मार्च को भी अपनी क्लीनिक नहीं खोली। 14 मार्च को जब वह अपनी क्लीनिक पर गए, तो उन्होंने एक बजाज स्कूटर को अपनी क्लीनिक के बाहर लावारिस पाया। उन्हें कुछ शक हुआ। उन्होंने पुलिस के 100 नंबर पर कॉल किया। फौरन कंट्रोल रूम से माटुंगा पुलिस को सूचना दी गई। बम निरोधक दस्ते की टीम भी वहां पहुंच गई।
प्रारंभिक जांच में स्कूटर की डिक्की में एक काला चिपचिपा पदार्थ पाया गया। जांच टीम को शक हुआ कि यह आरडीएक्स हो सकता है। राकेश मारिया उन दिनों ट्रैफिक पुलिस में डीसीपी थे। वह अपनी टीम के साथ ट्रैफिक को डायवर्ट करने और बैरिकेड्स को लगावाने के लिए वहां पहुंचे। बम निरोधक दस्ते ने स्कूटर से विस्फोटक को डिफ्यूज किया। उसके बाद उस स्कूटर को माटुंगा पुलिस स्टेशन में पार्क करवा दिया गया और ट्रैफिक को आम लोगों के लिए फिर खोल दिया गया।
अपनी पसंद की टीम चुनो और इन्वेस्टिगेशन शुरू करो
राकेश मारिया ने अपनी किताब LET ME SAY IT NOW में लिखा है कि उसी दौरान उनके पास वायरलेस से मैसेज आया कि किंग (मुंबई पुलिस कमिश्नर) उनसे अपने चेंबर में तत्काल मिलना चाहते हैं। मारिया शाम को करीब साढ़े छह बजे मुंबई पुलिस मुख्यालय पहुंच गए। मुंबई सीपी अमरजीत सिंह सामरा के केबिन में पहले से ही मुंबई क्राइम ब्रांच के तब के चीफ एम.एन.सिंह मौजूद थे। सामरा और सिंह ने राकेश मारिया से बम धमाकों और उसके बाद के हालात पर लंबी बातचीत की और फिर मारिया से सीधे-सीधे कहा कि हमने फैसला किया है कि इस केस का इनवेस्टिगेशन तुम करोगे। तुम ही इस केस को डिटेक्ट करो। सामरा से मारिया ने यह भी कहा कि तुम अपनी पसंद की टीम खुद चुनो और इनवेस्टिगेशन तत्काल शुरू कर दो।

भांडुप में एक गाड़ी के अंदर दिखे सस्पेक्ट
मारिया इसके बाद माहिम ट्रैफिक चौकी आ गए, जहां पास में ही ट्रैफिक पुलिस के डीसीपी का उन दिनों ऑफिस था। उन्होंने फिर अपनी टीम के लोगों को बुलाया। सभी के साथ मीटिंग की और फिर सभी को कहा कि पुलिस कंट्रोल रूम से संपर्क करो और पता करो कि 12 मार्च के ब्लास्ट के दिन क्या-क्या और असामान्य बातें कंट्रोल रूम को रिपोर्ट की गईं। 14 मार्च को रात 9.30 बजे मारिया को कंट्रोल रूम से बताया गया कि भांडुप में एक गाड़ी में कुछ सस्पेक्ट देखे गए थे। मुंबई में 12 मार्च को हुए ब्लास्ट के बाद उस गाड़ी में बैठे लोग गाड़ी छोड़कर कहीं भाग गए । मारिया को यह भी बताया गया कि जुहू में एक होटल के पास दो अलग-अलग गाड़ियों में बैठे लोगों ने एक दूसरे से बैग बदले और फिर भाग गए। तीसरी जानकारी राकेश मारिया को यह दी गई कि वरली में सीमेंस फैक्ट्री के पास एक मारुति वैन लावारिस मिली ।
इसमें हथियारों का जखीरा पड़ा हुआ था। इसमें सात एके-56 राइफल्स, 14 मैग्जींस, पिस्टल, हैंडग्रेनेड और टाइमर डिटोनेटर पेंसिल भी थीं। मुंबई पुलिस के एक अधिकारी ने हमें बताया कि इस मारुति वैन में बैठे लोगों को दरअसल, बीएमसी मुख्यालय जाना था और वहां बिल्कुल 26/11 के हमले की तर्ज पर अंधाधुंध गोलीबारी करनी थी और हैंडग्रेनेड फेंकने थे, लेकिन जब 12 मार्च, 1993 को बम धमाकों की वजह से मुंबई में जगह-जगह नाकाबंदी शुरू हो गई, तो मारुति में बैठे आरोपी डर गए और वह वरली में बीच रास्ते में ही गाड़ी छोड़कर भाग गए।
टाइगर मेमन की एंट्री
मारिया ने कंट्रोल रूम से मिली इस जानकारी के बाद अपनी टीम के साथ पहले वरली जाने का फैसला किया, जहां यह मारुति वैन खड़ी थी। उन्होंने फौरन यह निर्देश दिया कि पता किया जाए कि यह गाड़ी किसके नाम रजिस्टर्ड है? कुछ समय बाद ही यह जानकारी सामने आ गई कि गाड़ी की मूल मालकिन रूबीना सुलेमान मेमन है, जिसका आरटीओ के पास अड्रेस माहिम की अल-हुसैनी बिल्डिंग का लिखा पाया गया। इसके बाद राकेश मारिया ने अपने कुछ खबरियों से संपर्क किया कि पता करो कि अल-हुसैनी बिल्डिंग में यह मेमन परिवार कौन है? जवाब में एक नाम आया-टाइगर मेमन का। राकेश मारिया अपनी किताब में लिखते हैं कि उन्होंने टाइगर मेमन का नाम इससे पहले कभी नहीं सुना था। बाद में उन्हें बताया गया कि वह बहुत बड़ा स्मगलर है और अंडरवर्ल्ड से जुड़ा है। इसके बाद मुंबई पुलिस अल-हुसैनी बिल्डिंग मेमन के घर पहुंची, लेकिन वहां ताला लगा हुआ था। फौरन दरवाजा तोड़ा गया।

जांच टीम पूरे घर को सर्च कर रही थी। तभी मारिया की नजर घर के रेफ्रिजरेटर के पास एक कील पर गई। वहां एक गुच्छे में उन्हें एक बजाज स्कूटर की चाबी दिखी, जिस पर नंबर लिखा हुआ था-449 । उन्होंने यह चाबी अपने एक ऑफिसर को दी और कहा कि फौरन माटुंगा पुलिस स्टेशन जाओ, जहां दादर के नायगांव क्रास रोड पर 14 मार्च को लावारिस मिला एक स्कूटर रखा हुआ है। उस स्कूटर में यह चाबी लगाकर चेक करो कि क्या यह उसमें लगती है? संबंधित पुलिस अधिकारी कुछ ही मिनट में माटुंगा पुलिस स्टेशन पहुंच गया और अगले ही पल मारिया को सूचना दी कि यह मेमन के घर में मिली 449 नंबर की चाबी इसी बजाज स्कूटर की है।
ऐसे मिला अहम सुराग
इसके बाद जांच टीम समझ गई कि वरली में मिली मारुति वैन और दादर में मिले बजाज स्कूटर का आपस में कनेक्शन है। मतलब पूरे मुंबई में 12 मार्च को हुए बम धमाकों के पीछे टाइगर मेमन और उसके गिरोह का हाथ है। इसके बाद टाइगर मेमन के बारे में और डिटेल निकाली गई, तो पता चला कि इसका दाऊद से कनेक्शन है। दाऊद के बारे में मुंबई पुलिस को मालूम था कि वह साल, 1984 में मुंबई से दुबई भाग चुका है, पर टाइगर मेमन कहां है? इसके बारे में मुंबई पुलिस को तब तक कुछ पता नहीं था। इसके बाद जांच टीम ने अल-हुसैनी बिल्डिंग के वॉचमैन और आसपास के लोगों से पूछताछ की कि क्या उन्हें कुछ आइडिया है कि टाइगर मेमन के पास कौन-कौन लोग आते हैं। एक पुलिस अधिकारी ने हमें बताया कि उस पूछताछ में मुंबई की एक नामी कॉलगर्ल का नाम सामने आया, जिसके पास टाइगर मेमन नियमित जाता था। इस कॉलगर्ल व अन्य से पूछताछ में फिर तीन-चार और लोगों के नाम पता चले। इनमें एक नाम था-असगर मुकादम का।
मुंबई पुलिस ने फिर उसका मुंबई का अड्रेस निकाला और उसके घर पहुंच गई। उससे पूछताछ के बाद फिर 1993 के मुंबई ब्लास्ट के तमाम साजिशकर्ताओं के नाम एक-एक कर ओपन होते गए। इस केस में मुंबई पुलिस ने फिल्म अभिनेता संजय दत्त सहित 189 आरोपियों के खिलाफ 10 हजार से ज्यादा पेज का पहला आरोपपत्र 4 नवंबर, 1993 को मुंबई की कोर्ट में दाखिल किया था। इसके बाद 19 नवंबर, 1993 को सीबीआई को केस ट्रांसफर कर दिया गया। टाइगर मेमन के भाई याकूब मेमन, मुस्तफा दोसा, अबू सलेम सहित काफी सरगनाओं की गिरफ्तारी बाद में सीबीआई ने ही की । 100 से ज्यादा आरोपियों को इस केस में सजा हुई। संजय दत्त को आर्म्स एक्ट में दोषी ठहराया गया। 30 जुलाई, 2015 को याकूब मेमन को फांसी पर लटका दिया गया। 1993 में बतौर डीसीपी 449 नंबर की चाबी से केस का डिटेक्शन करने वाले करने वाले राकेश मारिया 22 साल बाद याकूब की फांसी के दिन मुंबई के सीपी थे।

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