भगवंत मान के सीएम ऑफिस में सिर्फ भगत सिंह और डॉ. आंबेडकर की तस्वीरें, राष्ट्रपति-प्रधानमंत्री की तस्वीरें क्यों नहीं?
- सरकारी दफ्तरों में किन-किनकी तस्वीरें लगनी चाहिए, यह सवाल फिर उठा है
- भगवंत मान के सीएम ऑफिस में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की तस्वरीं नहीं लगी हैं
- राज्य सरकारों के दफ्तरों में तस्वीरें लगाने का नियम क्या है, यह जानने लें
पंजाब। भगवंत मान ने पंजाब के मुख्यमंत्री पद का कार्यभार संभाला तो सचिवालय स्थित उनके दफ्तर की दीवार पर टंगी तस्वीरें भी बदल गईं। पंजाब के नए मुख्यमंत्री के ऑफिस की दीवार पर अब सिर्फ दो तस्वीरें टंगी हैं- पहली महान स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह की और दूसरी देश को संविधान की सौगात देने वाले डॉ. भीमराव आंबेडकर की। अमूमन मुख्यमंत्री कार्यालय, राजभवन समेत अन्य सरकारी दफ्तरों में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की तस्वीरें भी लगी होती हैं। हालांकि, तस्वीरों को लेकर कोई संवैधानिक प्रावधान नहीं है। इसलिए, कई बार तस्वीरें हटाने को लेकर मामला कोर्ट तक पहुंच चुका है। आइए जानते हैं कि आखिर कैसे तय होता है कि सरकारी दफ्तरों में किन-किन विभूतियों की तस्वीरें लगेंगी या नहीं लगेंगी।
चूंकि ताजा खबर का संदर्भ भगवंत मान हैं, इसलिए उनकी आम आदमी पार्टी की पहली सरकार यानी दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार की भी बात कर लेते हैं। केजरीवाल सरकार ने तय किया था कि दिल्ली के सरकारी दफ्तरों में भगत सिंह और डॉ. आंबेडकर के सिवा और किसी की तस्वीर नहीं लगेगी, खुद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की भी नहीं। भगवंत मान ने इसी धारा को आगे बढ़ाया है। इस वाकये से इतना तो समझ में आ जाता है कि सरकारी दफ्तरों में किनकी तस्वीर लगेगी, यह राज्य सरकारें तय करती हैं, केंद्र सरकार की तरफ से कोई नियम जारी नहीं होता जिसे राष्ट्रीय स्तर पर लागू किया जाए। ऐसा इसलिए क्योंकि न संविधान में इस संबंध में कोई प्रावधान किया गया है और न ही संसद से पास कोई कानून है और ना कोई केंद्रीय नियम ही है।
इतना स्पष्ट हो गया है कि केंद्रीय नियम के अभाव में सरकारी दफ्तरों में तस्वीरें लगाने के लिए विभूतियों का चयन राज्य सरकारें ही करती हैं। इसके लिए राज्य सरकारें नियम बनाती हैं जिनके तहत विभूतियों की सूची जारी की जाती है। सरकारें बदलती हैं तो नियम भी बदल जाते हैं और नियम बदलते हैं तो विभूतियों की लिस्ट भी बदल जाती है। वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में राष्ट्रीय प्रजातांत्रिक गठबंधन के केंद्र की सत्ता में आने के बाद से देश की राजनीति में ध्रुवीकरण काफी ज्यादा बढ़ गया है। समय के साथ-साथ केंद्र पर विपक्ष की पार्टियों के आरोप भी बढ़ने लगे हैं। वो अब जोर-जोर से कहने लगें हैं कि केंद्र संघवाद पर प्रहार करता है जो संविधान की मूल भावना पर कुठाराघात है। वहीं केंद्र राज्यों पर देशहित के मामलों पर भी दलगत राजनीति करने का आरोप मढ़ता है। बहरहाल, हमने इसकी चर्चा इसलिए की ताकि समझा जा सके कि ऐसे माहौल में किसी विपक्षी दल की सरकार से अपने दफ्तरों में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की तस्वीर लगाने की उम्मीद करना ही बेइमानी हो जाती है, खासकर तब जब वो ऐसा करने को संवैधानिक या कानूनी तौर पर बाध्य नहीं हैं।