महाराष्ट्र के सतारा का ऐसा गांव जहां ‘हर घर सोल्जर’, सेना की सेवा में कई पीढ़ियां

अनोखा है ये मिलिट्री गांव, जहां हर घर ने देश को दिया जांबाज सैनिक

सतारा/महाराष्ट्र। देश के लाखों युवाओं का ये सपना होता है कि वे भारतीय सेना में शामिल होकर देश सेवा करें. बहुत से युवा तो इस कोशिश में सालों लगा देते हैं लेकिन अपना सपना पूरा नहीं कर पाते। जी तोड़ मेहनत के बाद तैयारी कर अपने इस लक्ष्य को पा लेना आसान नहीं होता। मगर भारत में ही एक ऐसा गांव भी है जहां के युवाओं के अंदर इतना जोश है कि सेना में भर्ती होना उनके लिए सबसे बड़ा लक्ष्य है। तभी तो इस गांव को ‘मिलिट्री गांव’ के नाम से जाना जाता है।
मुंबई-बेंगलुरु हाईवे के पास एक छोटा सा गांव है। इ गांव का नाम है मिलिट्री आपशिंगे। इस गांव की एक पुरानी परंपरा है। यहां लगभग 300 परिवार हैं और हर परिवार से कम से कम एक सदस्य सेना में ज़रूर जाता है। यह परंपरा कई पीढ़ियों से चली आ रही है। यह गाव सतारा जिले के कराड तहसील में है और पुणे से लगभग 130 किलोमीटर दूर है।
मिलिट्री आपशिंगे को अंग्रेजों ने भी पहचाना था। उन्होंने यहां के लोगों के योगदान को सराहा था। प्रथम विश्व युद्ध में इस गांव के 46 बेटों ने अपनी जान दी थी। उनकी बहादुरी की कहानी दिखाने के लिए एक विजय स्तंभ बनाया गया था।
अब, इस गांव की विरासत को बचाने के लिए महाराष्ट्र सरकार ने 1 करोड़ रुपये दिए हैं। इससे गांव में कई तरह के सुधार कार्य किए जाएंगे। लेफ्टिनेंट कर्नल (रिटायर्ड) सतीश हांगे सतारा के जिला सैनिक कल्याण अधिकारी हैं। उन्होंने कहा कि उन्होंने लोक निर्माण विभाग से एक पूरी योजना बनाने के लिए कहा है।
उन्होंने कहा, ‘हमें पहले ही 55 लाख रुपये मिल चुके हैं। हम ब्रिटिश काल के युद्ध स्मारक और 2023 में युवाओं को सेना में भर्ती होने में मदद करने के लिए बने एक लर्निंग सेंटर का नवीनीकरण करेंगे। हमने अनुभवी सैनिकों और ग्रामीणों से सलाह ली है। मई में काम शुरू होने की उम्मीद है।’
गांव के लोग बचपन से ही युवाओं को सेना में जाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। उनका कहना है कि अगर उन्हें ज़रूरी सुविधाएं मिलें तो यह काम और भी आसान हो जाएगा। ब्रिगेडियर (रिटायर्ड) मोहन निकम आपशिंगे मिलिट्री ऑर्गनाइजेशन के अध्यक्ष हैं। उनके पूर्वजों ने ब्रिटिश भारतीय सेना में काम किया था। उन्होंने दोनों विश्व युद्धों में लड़ाई लड़ी थी। उन्होंने कहा कि एक नया युद्ध स्मारक बनाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि हम इस पर नए नाम लिखेंगे ताकि उनकी कुर्बानियों को याद रखा जा सके। यह हर परिवार के लिए गर्व का क्षण होगा।
निकम ने गांव के रक्षा कर्मियों पर काफी रिसर्च की है। उन्होंने हाल ही में एक अजीब मामला खोजा। एक पिराजी निकम थे। उन्होंने 1914 से पहले ब्रिटिश सेना में काम किया था। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान उन्हें फिर से भर्ती किया गया। भर्ती करने वाला अधिकारी डेक्कन प्रोविजन से था। वह पश्चिमी महाराष्ट्र और कोंकण क्षेत्रों में संभावित उम्मीदवारों की तलाश कर रहा था।
इस गांव की आबादी लगभग 3000 है। यहां से सबसे ज़्यादा सैनिक अलग-अलग इन्फैंट्री रेजिमेंट में गए हैं। खासकर मराठा लाइट इन्फैंट्री में। मोहन निकम ने बताया कि आज़ादी के बाद से अब तक लगभग 20 अधिकारियों ने सेना में अपनी सेवाएं दी हैं। ये लेफ्टिनेंट कर्नल और उससे ऊपर के रैंक के हैं।
महाराष्ट्र सरकार के पैसे से गांववालों को लोकल मिलिट्री अथॉरिटी के ज़रिए खराब हो चुके विमान, तोपें और दूसरे उपकरण मिलेंगे। इन्हें गांव में दिखाया जाएगा। अधिकारियों ने बताया कि यहां पहले से ही एक खराब टैंक है। गांव के सरपंच तुषार निकम ने कहा कि 1962, 1965, 1971 और कारगिल युद्ध सहित अलग-अलग युद्धों में 15 सैनिकों ने अपनी जान गंवाई है। उनकी कहानियां नई पीढ़ी और आने वाले लोगों को बताई जानी चाहिए। उनके बारे में सारी जानकारी नए स्मारक पर लिखी जाएगी। सतारा, सांगली और कोल्हापुर जिले हमेशा से सेना में भर्ती के लिए अहम रहे हैं। यहां से बहुत से लोग सेना में जाते हैं। यह खबर उन लोगों के लिए बहुत ही प्रेरणादायक है जो सेना में जाना चाहते हैं

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