प्रयागराज में नागों का अनोखा नागवासुकी मंदिर, दर्शन बिना अधूरी मानी जाती है संगम नगरी की तीर्थयात्रा

The unique Nagvasuki temple of snakes in Prayagraj, pilgrimage to Sangam city is considered incomplete without darshan

प्रयागराज/उत्तर प्रदेश। धर्म और आस्था की नगरी प्रयागराज के संगम तट से उत्तर दिशा की ओर दारागंज के उत्तरी कोने पर अति प्राचीन नागवासुकी मंदिर स्थित है। इस मंदिर में नागों के राजा वासुकी नाग विराजमान रहते हैं। मान्यता है कि प्रयागराज आने वाले हर श्रद्धालु और तीर्थयात्री की यात्रा तब तक अधूरी मानी जाती है, जब तक की वह नागवासुकी का दर्शन न कर लें।ऐसा कहा जाता है कि जब मुगल बादशाह औरंगजेब भारत में मंदिरों को तोड़ रहा था, तो वह अति चर्चित नागवासुकी मंदिर को खुद तोड़ने पहुंचा था। जैसे ही उसने मूर्ति पर भाला चलाया, तो अचानक दूध की धार निकली और चेहरे के ऊपर पड़ने से वो बेहोश हो गया।
प्रयागराज में नागराज वासुकी ने किया था विश्राम
पौराणिक कथाओं के अनुसार, समुद्र मंथन में देवताओं और असुरों ने नागवासुकी को सुमेरु पर्वत में लपेटकर उनका प्रयोग रस्सी के तौर पर किया था। वहीं, समुद्र मंथन के बाद नागराज वासुकी पूरी तरह लहूलुहान हो गए थे और भगवान विष्णु के कहने पर उन्होंने प्रयागराज में इसी जगह आराम किया था। इसी वजह से इसे नागवासुकी मंदिर कहा जाता है। जो भी श्रद्धालु सावन मास में नागवासुकी का दर्शन पूजन करता है, उसकी सारी बाधाएं दूर हो जाती हैं। इसके साथ ही कालसर्प दोष से भी मुक्ति मिलती है। नाग पंचमी के दिन दूर दराज से लाखों श्रद्धालु दर्शन पूजन के लिए यहां पहुंचते हैं।
पुराणों में वर्णन
यह प्राचीन मंदिर है और इसका कई पुराणों में वर्णन आता है। गंगा नदी के किनारे यह मंदिर है, इसलिए इस मंदिर का ज्यादा महत्व है। गंगा जी के साथ शिव जी का संबंध ज्यादा है। यहां काल सर्प दोष की पूजा होती है। साथ ही रुद्राभिषेक होता है। यहां सबकी मनोकामना पूरी होती है। नागवासुकी मंदिर के पुजारी पंडित श्याम बिहारी मिश्रा ने कहा कि सावन के महीने में इस मंदिर का ज्यादा महत्व है। नागवासुकी जी शंकर जी के गले के नागों के राजा हैं। समुद्र मंथन के बाद भगवान विष्णु द्वारा उन्हें यहां जगह दिया गया। यहां ब्रह्मा जी ने शंकर जी के स्थापना के लिए यज्ञ किया था। उस यज्ञ में भगवान वासुकी जी भी गए हुए थे। जब वे वापस आने लगे तो विष्णु जी ने कहा कि इन्हें यहां स्थापित कर दिया जाए।
वासुकी जी थोड़ा नाराज हुए कि मैं सात हजार वर्ष से यहां पड़ा हूं और आज मेरी याद आई। विष्णु जी ने कहा कि नाराज मत होइए, कोई वचन मांग लीजिए। तब उन्होंने वचन मांगा कि सावन की नाग पंचमी को तीनों लोक में हमारी पूजा हो। यहां सावन में दर्शन करने मात्र से सभी ग्रहों का नाश हो जाता है। कुंभ आने वाले तीर्थयात्रियों के लिए यह मंदिर महत्व रखता है। इस मंदिर का दर्शन पूजन करने के बाद भी कुंभ तीर्थ सफल माना जाता है। सरकार की ओर से यहां निर्माण के काम कराए जा रहे हैं। यहां दर्शन करने वाले दर्शनार्थियों की संख्या में हर साल इजाफा देखने को मिल रहा है।

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