नगर निगम एक हुआ पर नहीं घटा तामझाम,200 करोड़ की बचत पर सवालिया निशान

नई दिल्ली डेस्क। दिल्ली नगर निगम में स्पेशल ऑफिसर की व्यवस्था शुरू होते ही सवालों के घेरे में आ गई है। नये अधिकारियों के शुरूआती निर्णयों ने ही नगर निगम के 200 करोड़ सालाना की बचत पर सवाल खड़े कर दिये हैं। स्पेशल ऑफिसर अश्विनी कुमार और निगम आयुक्त ज्ञानेश भारती ने जिस तरह से अधिकारियों के बीच निगम के कामों का बंटवारा किया है, उससे नगर निगम के ऊपर आर्थिक बोझ घटने के बजाय और ज्यादा बढ़ने वाला है। तीन हिस्सों में बंटवारे से पहले दिल्ली नगर निगम में कुल 6 अतिरिक्त आयुक्तों की व्यवस्था थी, लेकिन पूरा काम अधिकतर समय 4 आयुक्तों के द्वारा देखा जाता था। लेकिन अब नगर निगम की नई व्यवस्था में 9 अतिरिक्त आयुक्तों को काम सोंपा गया है। सभी अतिरिक्त आयुक्तों के पास अपना पूरा लाव-लश्कर और तामझाम होता है। ऐसे में 2011-12 के मुकाबले वर्तमान में नगर निगम पर केवल अतिरिक्त आयुक्तों का ही दोगुना से ज्यादा बोझ हो गया है। केवल इतना ही नहीं बल्कि इंजीनियर-इन-चीफ के मामले में भी यही हाल है। 2011-12 तक दिल्ली नगर निगम में केवल एक पद इंजीनियर-इन-चीफ का होता था। लेकिन अब नगर निगम में तीन इंजीनियर-इन-चीफ बनाये गये हैं। ऐसे में वर्तमान समय में नगर निगम के ऊपर पहले की तरह तीन गुना आर्थिक बोझ पड़ रहा है। खास बात यह है कि अब इंजीनियर-इन-चीफ के पद के साथ 1, 2 और 3 की रेंकिंग दी गई है। जबकि तीनों के पास पूरा अमला है और इसका सारा खर्च नगर निगम के ऊपर ही पड़ रहा है। दिल्ली नगर निगम में प्रेस एवं सूचना निदेशक रहे योगेंद्र सिंह मान बताते हैं कि एकीकृत नगर निगम में 6 अतिरिक्त आयुक्तों की व्यवस्था थी, लेकिन अधिकतर समय केवल 4 अतिरिक्त आयुक्त ही तैनात रहे। निगम के ट्राईफरकेशन की वजह से इस व्यवस्था को तीन गुना करना पड़ा था, जिसकी वजह से निगम के ऊपर तीन गुना भार बढ़ जाने की वजह से सालाना करीब 200 करोड़ रूपये का खर्च बढ़ गया था।
अमित शाह ने कही थी खर्च घटाने की बात
बता दें कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा और राज्यसभा में नगर निगमों के यूनीफिकेशन का बिल रखते समय कहा था कि नगर निगम के एक हो जाने से खर्चे घट जायेंगे। उन्होंने कहा था कि जिस व्यवस्था पर अब तीन जगह खर्च करना पड़ता है, उस पर एकीकरण के पश्चात एक जगह खर्च करना होगा। लेकिन ताजा व्यवस्था में उन सभी अधिकारियों को ज्यों का त्यों रखा गया है। जिसकी वजह से सरकारी अधिकारियों और उनके विभागों पर होने वाले खर्चे में कटौती के बजाय बढ़ोतरी ही होगी।
जब यही व्यवस्था रखनी थी तो एकीकरण की जरूरत क्या थी?
दिल्ली के सियासी और नगर निगम के मामलों के विशेष जानकार जगदीश ममगांई का कहना है कि नगर निगम की नई व्यवस्था में केवल मेयर और पॉलिटिकल विंग के लोगों के खर्चे कम हुए हैं। लेकिन खास बात है कि निगम के नेताओं को तो वैसे भी कोई सेलरी नहीं दी जाती है। और निगम के गठन के बाद मेयर व पॉलिटिकल विंग की व्यवस्था तो फिर से शुरू होनी ही है। अतः इसके खर्चों का निगम की आर्थिक हालत पर विशेष प्रभाव नहीं पड़ता है।
जबकि विशेष अधिकारी के कामकाज संभालने की वजह से निगम पर भारी भरकम अतिरिक्त खर्च शुरू हो गया है। क्योंकि उनके कार्यालय में पूरा तामझाम कायम रहेगा। निगम के एकीकरण के साथ अधिकारियों और उनके विभागों में कटौती की जानी थी, जो कि नहीं की गई और सभी बड़े अधिकारियों को ज्यों के त्यों एडजस्ट कर दिया गया है। ऐसे में नई व्यवस्था से भी नगर निगम मे खर्चों पर कोई कमी नहीं आने वाली। क्योंकि तीन मेयर से ज्यादा तो स्पेशल ऑफिसर के कार्यालय पर ही खर्च हो जायेगा।
सभी को खुश करने के चक्कर में नहीं हो सकी खर्चों में कमी
बता दें कि स्पेशल ऑफिसर अश्विनी कुमार को नगर निगम के कामकाज की ज्यादा जानकारी नहीं है। अतः निगम आयुक्त ज्ञानेश भारती की मर्जी ही सभी निर्णयों में चल रही है। बताया जा रहा है कि आयुक्त ज्ञानेश भारती ने सभी को खुश करने के लिए अलग अलग जिम्मेदारियां दे दी हैं, ताकि उनके निर्णयों का कोई अधिकारी विरोध भी नहीं कर सके। अब देखना यह है कि आने वाले दिनों में तीन इंजीनियर-इन-चीफ और 9 अतिरिक्त आयुक्तों की भारी-भरकम टीम के साथ नगर निगम के कामकाज में कितनी पारदर्शिता और तेजी आयेगी?

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