गाजा में घरों का मलबा है, मलबे के नीचे इंसानों की हड्डियां

शहर की तबाही देख रो पड़े 15 महीने बाद लौटे गाजावासी

गाजा पट्टी। गाजा में 15 महीने बाद लागू हुए युद्धविराम के बाद लोग अपने घरों को लौट रहे हैं, जो इजरायल की बमबारी की वजह से शिविरों में रहने को मजबूर थे। गाजा के लोगों में महीनों बाद वापस अपने घरों को लौटने की खुशी है लेकिन तबाही का मंजर उनको हताशा में डूबो रहा है। गाजावासियों को अब वहां सिर्फ मलबे के ढेर दिख रहे हैं, जहां कभी उनके मकान, दुकान, स्कूल और पार्क थे। गाजावासियों के सामने अपने तबाह शहर में नई जिंदगी शुरू करने की चुनौती है। मानवीय मामलों के संयुक्त राष्ट्र के कार्यालय की रिपोर्ट कहती है कि गाजा पट्टी में युद्ध के चलते 4,36,000 से ज्यादा इमारतें बमबारी में पूरी तरह गिर गई हैं और 2,76,000 इमारतों को नुकसान पहुंचा है। गाजा की 90 फीसदी आबादी इस युद्ध के चलते विस्थापित हुई है।
युद्रविराम के बाद राफा लौटे मोहम्मद अबू बिलाल ने सीएनएन से बात करते हुए कहा, ‘मेरे चार घर थे लेकिन अब सभी जमींदोज हो चुके हैं। अब मैं क्या बताऊं कि मैं कहां हूं, मेरा घर कहां है और मेरी जिंदगी क्या है।’ एक और स्थानीय निवासी ने कहा, ‘जंग रुकते ही मैं यह देखने आया कि मेरा घर सही सलामत है या नहीं, मुझे सिर्फ ईंट-पत्थरों का मलबा मिला है। बिना घरों के हमारी कोई जिंदगी नहीं बची है। अब हम सड़क पर हैं और तंबू में रहना मजबूरी है।’
गाजा में अपने घरों को देखने के बाद लोगों में सबसे बड़ी चिंता यही है कि इस बर्बादी के बीच वे कैसे अपना जीवन यापन करेंगे। उत्तरी गाजा के बेत लाहिया की नादिया अबू खलूब कहती हैं, ‘पूरा इलाका बमबारी से तबाह हो गया है। मेरे पास आज भी अपने घर की चाबी है, जिसमें ताला लगाकर मैं जंग शुरू होने के बाद गई थी। अब लौटी हूं तो मेरे घर में से कुछ भी नहीं बचा, अब सिर्फ चाबी बची है।’ राफा के निवासी अबू ताहा ने एपी से बात करते हुए कहा, ‘यह ऐसा है, जैसे आप किसी हॉलीवुड हॉरर फिल्म में देखते हैं। फिल्म में ही इस तरह की तबाही हमने देखी थी, जो आज हम अपने शहर में देख रहे हैं। घर जमींदोज हैं, मलबे के नीचे से इंसानों की खोपड़ियां और हड्डियां दिख रही हैं। ये सब डराने वाला है, मलबा हटाने पर इंसानी हड्डियां दिखना सिहरा देता है।’
गाजा शहर के 40 वर्षीय अहमद अबू अयहम कहते हैं कि युद्धविराम की खबर निश्चित ही अच्छी है लेकिन नुकसान इतना ज्यादा है कि जश्न नहीं मनाने को कुछ नहीं है। हम एक बहुत गहरे दर्द में हैं, हमारे सीनों के अंदर इतना दर्द है कि यह सिर्फ एक-दूसरे के गले लगकर रोया जा सकता है। हमें एक दूसरे के साथ मिलकर आगे बढ़ने और दर्द बांटना है।

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