यूपी में सामने आया एंबुलेंस सेवा प्रदाता कंपनी का घोटाला, फर्जी मरीजों की संख्या दिखाकर भुगतान कराने का लगा आरोप
बांदा,(उत्तर प्रदेश)। मरीजों को अस्पताल तक पहुंचाने के लिए शासन द्वारा एंबुलेंस 102 व एंबुलेंस 108 चलाई जा रही है। जिसके माध्यम से गंभीर मरीजों को तत्काल सरकारी अस्पताल पहुंचाया जाता है। लेकिन एंबुलेंस सेवा प्रदाता कंपनी फर्जी मरीजों की संख्या दिखाकर सरकार से भुगतान प्राप्त कर रही है। ऐसे मामलों की जांच के आदेश सरकार द्वारा मिलते ही, जनपद में सभी 8 ब्लाकों में जांच के लिए 8 टीमें गठित कर दी गई हैं। जिन्होंने जांच भी शुरू कर दी है।
एंबुलेंस सेवा से गंभीर मरीजों को लाभ
सरकार द्वारा गंभीर रूप से बीमार या फिर दुर्घटना में घायल हुए मरीजों को एंबुलेंस के जरिए फौरी तौर पर अस्पताल पहुंचाने की व्यवस्था की गई है। इस व्यवस्था से मरीज को समय से अस्पताल पहुंचाने में आसानी रहती है। जिससे मरीजों का समय से इलाज शुरू हो जाता है और उनकी जान बच जाती है। सेवा प्रदाता कंपनी और सरकार के बीच समझौता है कि मरीजों को समय से अस्पताल पहुंचाया जाए, इसके बदले में शासन की ओर से कंपनी को लाभार्थियों के हिसाब से भुगतान किया जाता है। लेकिन आजकल एंबुलेंस सेवा प्रदाता कंपनी मरीजों की फर्जी संख्या भरकर बिना साधन उपलब्ध कराए ही भुगतान करा रही है।
3 माह के लाभार्थियों की जांच
जब यह मामला सरकार के संज्ञान में आया तो सरकार ने तत्काल जांच के आदेश दे दिए हैं। शासन के निर्देश पर जनपद बांदा के सभी आठ ब्लॉकों में जांच शुरू करने के लिए आठ टीमें बनाई गई हैं। जिन्हें जनवरी से मार्च तक 3 माह के लाभार्थियों से फीडबैक लेने को कहा गया है। इस समय जनपद में कुल 44 एंबुलेंस हैं। जिसमें से 21 एंबुलेंस 102 व 23 एंबुलेंस 108 के लिए संचालित की जा रही हैं। वहीं तीन माह में 2800 लोगों को एंबुलेंस सेवा का लाभ लेने के मामले दर्ज किए गए हैं। गठित टीमें सभी लाभार्थियों को फोन करके जानकारी प्राप्त कर रही हैं कि उन्होंने अमुक तिथि में एंबुलेंस सेवा का लाभ लिया था या नहीं लिया था?
गर्भवती महिलाओं को नहीं पहुंचाते वापस घर
बताया तो यह भी जाता है कि एंबुलेंस के जरिए जिन गर्भवती महिलाओं को अस्पताल पहुंचाया जाता है। उन्हें वापस घर भेजने की जिम्मेदारी भी एंबुलेंस की रहती है। लेकिन कॉल करने के बाद भी एंबुलेंस वापस मरीजों को नहीं ले जाती है, जबकि एंबुलेंस कर्मी उन्हें घर पहुंचाने का मामला भी दर्ज कर लेते हैं। इसी तरह ऐसे मामले भी दर्ज किए जाते हैं। जहां से कॉल आती है और एंबुलेंस समय से नहीं पहुंचती। इन मामलों को भी पीसीआर भर कर भुगतान प्राप्त कर लिया जाता है।
तीन चरणों में होगी जांच
इस बारे में डीसीएम डिस्टिक प्रोजेक्ट मैनेजर कुशल यादव का कहना है कि जांच 3 चरणों में कराई जाएगी। पहले चरण में जांच की शुरुआत ब्लॉक स्तर पर की गई है। दूसरे चरण में जिला और फिर मंडलीय जांच की प्रक्रिया पूरी की जाएगी। ब्लॉक स्तरीय जिला स्तरीय जांच के नोडल अधिकारी सीएमओ बनाए गए हैं। जिसकी मॉनिटरिंग भी वह स्वयं कर रहे हैं, ताकि जांच में किसी तरह की कोताही न बरती जाए।