कानून बनाने के लिए अदालत नहीं दे सकती है निर्देश : दिल्ली हाई कोर्ट

नई दिल्ली। निजी जासूसों और उनकी एजेंसियों की गतिविधियों के नियमन की मांग वाली याचिका का दिल्ली हाई कोर्ट ने यह कहते हुए निपटारा कर दिया कि अदालत कानून बनाने के लिए निर्देश नहीं दे सकती है। इस संबंध में दिशा- निर्देश जारी करने से इन्कार करते हुए कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी व न्यायमूर्ति नवीन चावला की पीठ ने केंद्र सरकार से कहा कि याचिका को प्रतिवेदन के तौर पर विचार करें कि क्या इस पर कानून बनाया जा सकता है या नहीं।

अधिवक्ता प्रीति सिंह के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया था कि निजी जासूसों, जांचकर्ताओं और उनकी एजेंसियों का काम किसी भी मौजूदा वैधानिक ढांचे के दायरे से बाहर है। याचिकाकर्ता ने यह भी कहा था कि कि वर्ष 2007 का प्राइवेट डिटेक्टिव एजेंसीज (रेगुलेशन) बिल पिछले 13 साल से संसद में लंबित है और बाद में खत्म हो गया। ऐसे में निजी जासूसों और उनकी एजेंसियों की गतिविधियों का कोई कानूनी शासन नहीं है। कानून नहीं होने के कारण कई पीड़ितों के साथ दुर्व्यवहार किया जा रहा है।

निजी जासूसों को उत्तरदायी बनाने के लिए कोई वैधानिक कानून लागू नहीं किया जा सकता है। याचिका में दलील दी गई है कि बिना जवाबदेही के काम कर रहे निजी जासूस नागरिक के मौलिक अधिकारों के लिए खतरा बन जाता है। याचिकाकर्ता के अपने पति के साथ तनावपूर्ण संबंध थे। याचिकाकर्ता का आरोप है कि उनका पीछा करने के लिए एक निजी जासूस नियुक्त किया था और निजी जासूस की अनियमित गतिविधियां उसकी निजता का उल्लंघन कर रही हैं।

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