चार बार सांसद रहे पर वक्‍त ऐसा भी आया जब पार्टी ऑफिस से मिलने वाले खाने पर किया गुजारा

He was a four-time MP but there came a time when he lived on food provided by the party office.

गाजीपुर/उत्तर प्रदेश। अपने दौर के नामचीन कम्युनिस्ट नेता सरजू पांडेय चार बार सांसद रहे। लेकिन 1977 का चुनाव हारने के बाद उनको खुद आर्थिक तंगी की मार झेलनी पड़ी। उन्हें गाजीपुर और भारत की राजनीति में उनकी सहज, सरल और फक्कड़ स्वभाव के कारण विशिष्ट स्थान दिया जाता है।
‘गाजीपुर के गौरव बिंदु’ के लेखक डॉक्टर पीएन सिंह ने सरजू पांडेय को लेकर अपनी पुस्तक में विस्तार से लिखा है। लेखक पीएन सिंह के अनुसार कामरेड पांडेय की पहली विशेषता उनका सरल, सहज और फक्कड़ स्वभाव था। उनके कहे और किए में दुर्लभ एकरूपता थी। उनके जीवन में कुछ भी गुप्त नहीं था। उनके राजनीतिक और निजी जीवन का वह अंश बहुत कम था जिसे नितांत व्यक्तिगत कहा जा सके।
वह कहते हैं कि सरजू पांडेय ने उनके सामने किसी की पीठ पीछे झूठी शिकायत करना संभव नहीं था। शिकायत करने वाले का नाम लेते ही वह संबंधित व्यक्ति से बात करते थे। पार्टी के अनेक कार्यकर्ता उनकी इस शैली से नाखुश भी रहते थे। लेकिन, कामरेड पांडेय कहना था कि किसी के पीठ पीछे ऐसी बात नहीं करनी चाहिए जो उसके मुंह पर ना कही जा सके। सच बोलने के साहस के अभाव में ही ग्रंथियां बनती हैं। इसलिए आदमी को बात, व्यवहार में समझदार, सहज और सरल होना चाहिए। लेखक सिंह के अनुसार इन्ही गुणों के कारण कामरेड पांडेय अपने सारे जीवन में मस्त और फक्कड़ बने रहे। सहजता के बिना फक्कड़पन संभव नहीं है।
पुस्तक में उनके दूसरे स्वभाव का विवरण भी दर्ज है। कामरेड पांडेय ने कभी अपने लिए भौतिक संसाधन नहीं जमा किए। धन संग्रह तो उनकी सोच का कभी भी हिस्सा नहीं रहा। उनके पद और प्रभाव का इस्तेमाल कर बहुतों ने धन कमाया। लेकिन उन्होंने अपने या अपने परिवार के लिए ऐसा कुछ नहीं किया। 1977 में चुनाव हार जाने के बाद खाने-पहनने तक का संकट खड़ा हो गया, जबकि वह चार बार सांसद रह चुके थे।
ऐसे में कम्युनिस्ट पार्टी कार्यालय में ही जो कुछ रूखा-सूखा मिलता था, एक समय उसी से काम चलता था। कामरेड पांडेय समृद्धि और अभाव दोनों से निरपेक्ष रहते थे। इसी कारण उनमें धन संग्रह की लालसा कभी नहीं देखी गई। उनके मरने के बाद उनके परिवार के पास केवल स्वतंत्रता सेनानी पेंशन और तीन कमरों का एक अधूरा मकान है। यह मकान भी पार्टी नेताओं के दबाव में किसी प्रकार बना पाया था। पीएन सिंह के अनुसार आज के दूषित राजनीतिक माहौल में इसे पागलपन ही माना जाएगा। लेकिन, अपने सिद्धांतों पर जीने के लिए एक विशेष किस्म का पागलपन जरूरी होता है।

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