कामाख्या मंदिर की कहानी जानकर आप भी हो जाएंगे हैरान, प्रसाद में मिलती है ऐसी चीज

असम के एक मंदिर में माता रानी की योनि की पूजा होती है। इसके अलावा यहां पर प्रसाद के रूप में खून की रुई बांटी जाती है। इस रूई को लेने के लिए लाखों भक्तों की भीड़ जमा होती है। असम में मां कामाख्या देवी का मंदिर अपनी महानताओं के लिए प्रचलित हैं।

असम के एक मंदिर में माता रानी की योनि की पूजा होती है। इसके अलावा यहां पर प्रसाद के रूप में खून की रुई बांटी जाती है। इस रूई को लेने के लिए लाखों भक्तों की भीड़ जमा होती है। असम में मां कामाख्या देवी का मंदिर अपनी महानताओं के लिए प्रचलित हैं। यहां पर माता के दर्शन के लिए और उनके प्रसाद को लेने को लिए कई भक्त विदेशों से भी आते हैं। इस मंदिर के बारे में ऐसा माना जाता है कि कामाख्या मंदिर में जो भी भक्त मां की योनि के दर्शन करता है और उसके सभी कष्ट मिट जाते हैं। साथ ही मां अपने भक्तों की हर इच्छा को पूरी करतीं हैं। आइए जानते हैं मां कामाख्या मंदिर की कहानी और उनके कुछ रहस्यों के बारे में…
मां कामाख्या 3 दिन तक आराम करती हैं। एक तरफ जहां मासिक धर्म के दौरान महिलाएं आराम तक नहीं कर पाती हैं, वहीं असम के इस मंदिर की परम्परा एकदम विपरीत है। मासिक धर्म के चलते मां कामाख्या देवी को 3 दिनों का आराम दिया जाता है। इनको ‘बहते रक्त की देवी’ के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि मां कामाख्या देवी का एक ऐसा स्वरूप भी है, जो नियम के अनुसार हर वर्ष धर्म के चक्र में आता है। यहां के लोगों के अनुसार प्रतिवर्ष जून के महीने में कामाख्या देवी को मासिक धर्म होता है। उनकी योनि से रक्त निकलता है और उनके बहते खून से ब्रह्मपुत्र नदी का रंग लाल हो जाता है।
जब माता को जून के महीन में पीरियड्स होता है तब मंदिर को 3 दिनों के लिए बंद कर दिया जाता है। लेकिन उस मंदिर के पास में ही ‘अम्बूवाची पर्व’ मनाया जाता है। इस पर्व को मेले के रूप में मनाया जाता है। इस दौरान मेले में सैलानियों के साथ-साथ साधू-संत, तांत्रिक, पुजारी आदि भक्त लोग आते हैं। इसी समय पर्वत की अलग-अलग गुफाओं में बैठकर साधु और पुजारी शक्ति प्राप्त करने के लिए साधना करते हैं। मां कामाख्या देवी के इस मंदिर में देश-विदेश से लोग मासिक धर्म के खून से लिपटी हुई रूई के प्रसाद को लेने के लिए आते हैं और लम्बी लाइन में लगकर मां के प्रसाद को प्राप्त करते हैं।
कामाख्या मंदिर की कहानी
पौराणिक कथाओं के अनुसार जब अपने पिता राजा दक्ष के द्वारा किए जा रहे यज्ञ में अपमानित होकर सती ने अग्निकुंड में कूदकर आत्मदाह कर दिया। तब भगवान शंकर मोह के वश में आकर तांडव करने लगे थे और इसी मोह को खत्म करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने चक्र से माता सती के 51 भाग कर दिए। माता सती के वह भाग जहां पर भी गिरे वहां पर माता का एक शक्तिपीठ बन गया। असम के इस स्थान पर माता की योनि गिरी थी। जिस वजह से इस जगह का नाम कामाख्या पड़ा।
कहा जाता है कि इस मंदिर के पास मौजूद सीढ़ियां अधूरी हैं। लोगों के अनुसार नराका नाम का एक दानव था, जिसे कामाख्या देवी से प्यार हो गया था। जब वह अपनी शादी का प्रस्ताव लेकर माता के पास आया, तो मां कामाख्या देवी ने उसके सामने एक शर्त रखी कि अगर वह निलांचल पर्वत पर सीढ़ियां बना देगा। तो मां उस नराका नाम के दानव से विवाह कर लेंगी। लेकिन वह दानव उन सीढ़ियों को कभी नहीं बना पाया। ऐसे में अगर आप भी असम घूमने के लिए जाते हैं तो एक बार मां कामाख्या देवी के दर्शन जरूर करें, क्योंकि ये एक अनोखा मंदिर है।

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