बुराई पर अच्छाई का प्रतीक है होलिका दहन का पर्व

The festival of Holika Dahan is a symbol of good over evil.

होली दहन हर साल फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को किया जाता है। यह त्योहार मुख्य रूप से 2 दिन का होता है। इस साल 7 मार्च को होलिका दहन और 8 मार्च को होली मनाई जाएगी। बता दें कि होली को अन्य कई नामों से भी जानते हैं, जिनमें से रंगवाली, होली धुलेटी, मंजल कुली, याओसंग, डोल पूर्णिमा, उकुली, जजिरी, शिगमो, या फगवा के नाम से भी जाना जाता है। यह त्योहार बुराई पर अच्छाई के प्रतीक के तौर पर भी मनाया जाता है।

होलिका दहन

होलिका दहन को छोटी होली के नाम से भी जाना जाता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, इस वर्ष 7 मार्च को शाम 6:24 बजे से रात 8:51 के बीच होलिका दहन का शुभ मुहूर्त रहेगा। वहीं होलिका दहन के पीछे भी पौरोणिक मान्यता जुड़ी हुई है। वहीं इसके अलगे दिन यानि की 8 मार्च को लोग एक-दूसरे के साथ रंगों और फूलों के साथ होली खेलते हैं। इस बार होलिका दहन का समय करीब 2 घंटे 27 मिनट तक रहेगा।

होलिका दहन का महत्व और पूजा

होलिका दहन के पीछे एक कहानी है। कहते हैं कि होलिका दहन भगवान विष्णु के प्रति उनके भक्त प्रहलाद की भक्ति का जश्न है। इस दिन लोग होलिका की पूजा कर अपने-अपने घरों में सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। इस दौरान लोग होलिका दहन से पहले लकड़ी की चिता को मौली से तीन या सात बार लपेटा जाता है। फिर उस पर पवित्र जल से आचमन कर रोली, कुमकुम और फूल छिड़ककर पूजा की जाती है। इसके बाद अपने इष्ट देव से प्रार्थना करते लिए लकड़ियों को जलाया जाता है। इस होलिका के सात या 5 चक्कर लगाकर इस पवित्र आग को अपने घर ले जाते हैं। कहा जाता है यह पूजा सभी तरह की नकारात्मक शक्तियों का नाश करती है।

होलिका दहन की कहानी

होली का त्योहार रंगो और उत्सव का त्योहार है। होली में लोग सारे गिले-शिकवे भुलाकर एक-दूसरे को अबीर-गुलाल से रंगकर जीवन में खुशियों का स्वागत करते हैं। मान्यता है कि भक्त प्रहलाद और होलिका की कथा से इस त्योहार की शुरूआत हुई थी। हिंदू पौराणिक कथा के मुताबिक भगवान विष्णु ने अपने अनन्य भक्त प्रहलाद को उसके पिता हिरणाकश्यप के बुरे इरादों से बचाया था। हिरणाकश्यप राक्षस प्रवृत्ति का राजा था। लेकिन उसका पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का परम भक्त था और उनके नाम का हर समय जाप किया करता था। जो हिरणाकश्यप को पसंद नहीं था।

वहीं हिरणाकश्यप की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग से नहीं जल सकती। जब वह प्रहलाद को ईश्वर की भक्ति से नहीं रोक पाया तो उसने बहन होलिका से प्रहलाद को लेकर अग्नि में बैठने को कहा। होलिका के ऐसा करते ही होलिका आग में जलकर भस्म हो गई, लेकिन इस दौरान प्रहलाद को आंच भी नहीं आई। तभी से होलिका दहन के पर्व को मनाया जाने लगा।

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