योगी आदित्यनाथ की धाक पर लगा चांद भाजपा के भविष्य की तरफ भी एक संकेत

उत्तर प्रदेश डेस्क। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजे सामने हैं। योगी आदित्यनाथ  ने 37 साल बाद देश के सबसे बड़े सूबे में इतिहास रच दिया है। 37 साल बाद किसी पार्टी की दोबारा सरकार बनने जा रही है। और पहली बार कोई सीएम लगातार दूसरी बार इस ओहदे पर बैठने जा रहा है। अब सवाल ये है कि भारतीय जनता पार्टी  के स्वर्णिम इतिहास में रत्न जड़ने का श्रेय किसे जाता है? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री और भाजपा के चाणक्य अमित शाह या योगी आदित्यनाथ। औपचारिक जवाब आपको यही मिलेगा कि ये भाजपा के संगठन की ताकत का नतीजा है। पर ऐसा है क्या? मुझे नहीं लगता। 2014 के बाद ये पहला ऐसा चुनाव था जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या अमित शाह ने राज्य सरकार की सफलताओं को आगे रखा। इस लिहाज से योगी आदित्यनाथ के लिए ये जानदेश भाजपा के भविष्य की तरफ भी एक संकेत है। योगी आदित्यनाथ चुनाव से पहले भी ट्रंप कार्ड साबित हुए हैं। पार्टी ने योगी की लोकप्रियता का इस्तेमाल हर जगह किया। हैदराबाद के नगरपालिका चुनाव से लेकर पश्चिम बंगाल तक। हार की विवेचना से इतर भाजपा के विस्तार को पैमान माना जाए तो योगी जहां भी गए वहां फायदा हुआ। पश्चिम बंगाल में भाजपा तीन से 77 तक पहुंच गई। फिर दोहराना चाहूंगा कि इसमें योगी मुख्य भूमिका में नहीं थे लेकिन पार्टी की विचारधारा को बेबाकी से जन-जन तक पहुंचाने में उन्होंने मदद की। बिहार चुनाव में भी योगी ने जबरदस्त रैलियां की। जहां हार-जीत का अंतर बेहद कम रहा।
मिशन 2024 के नायक होंगे योगी
योगी आदित्यनाथ ऐसे प्रदेश में भाजपा का नेतृत्व कर रहे हैं जो 2024 के मिशन में भी पार्टी के लिए अहम भूमिका निभाएगा। 2014 में 73 और 2019 में 62 लोकसभा सीटें भाजपा की झोली में यूपी से गई। इस ट्रैक रिकॉर्ड को बनाए रखने का दारोमदार योगी पर है। इस जीत से एक बात पक्की हो गई कि यूपी में योगी का विकल्प कोई नहीं है। विधानसभा चुनाव से पहले कुछ महीनों तक चली खींचतान को अब बहुत पुराना इतिहास ही मान कर चलना चाहिए। योगी ने अपनी नेतृत्व क्षमता का लोहा मनवाकर पार्टी के सभी मुख्यमंत्रियों की कतार में अपनी लाइन सबसे आगे कर ली है। किसान आंदोलन और लखीमपुर की घटना के बाद भाजपा का कमबैक ये संदेश देता है कि पार्टी की विचारधारा से समझौता किए बगैर अगर कोई नेता सारे विपक्षी मॉड्यूल को ध्वस्त कर सकता है तो वो योगी हैं।


नहीं तो मंदसौर की फायरिंग याद कर लीजिए। मध्य प्रदेश के इस जिले में कर्जमाफी की मांग कर रहे किसानों पर 2017 में पुलिस फायरिंग हुई। पांच किसान मारे गए। व्यापमं की आग पहले ही लगी थी। अगले साल चुनाव में शिवराज सिंह की सरकार चली गई। कांग्रेस ने जीत हासिल कर ली। मोदी लहर में एक के बाद एक चुनाव जीतने के सिलसिले पर ब्रेक लग गया। हालांकि 2014 के अगले साल दिल्ली में भी बीजेपी की हार हुई थी जिसे अरविंद केजरीवाल की वैकल्पिक राजनीति को चांस देना बताया गया। हालांकि वो दोबारा भी जीते और प्रचंड बहुमत से। लेकिन मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, पंजाब और राजस्थान की हार से ये तय हो गया कि विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री की लहर काम करता रहे ऐसा नहीं है। तब तक एक और बात देखने को मिली। नगरपालिका से लेकर विधानसभा तक के चुनाव भाजपा ने मोदी के नाम पर लड़ा। प्रचार में भी मोदी की उपलब्धियों को आगे रखा गया।
इस लिहाज से योगी आदित्यनाथ की जीत प्रचंड है। यहां के प्रचार में केंद्रीय नेताओं ने भी कानून-व्यवस्था और विकास के मोर्चे पर योगी की उपलब्धियों को आगे रखा। उधर योगी ने विकास के साथ-साथ कट्टर हिंदुत्व के अपने एजेंडे को सहेजे रखा। मेरी निजी राय में शुरुआती दो चरण के चुनाव के बाद योगी ने अगर इस हथियारो को धार दी तो सिर्फ इसलिए कि उन्हें कुछ अंदाजा हो गया था। विकास और हिंदुत्व के एजेंडे को जब मिलाया गया तब फ्लोटर वोटर सीधे तौर पर पाले में आ गए। जो राम को लाए हैं, हम उनको लाएंगे जैसी बातें वोटरों के मुंह से निकलने लगी। अखिलेश यादव के समर्थक अगर पहले फेज तक मुखर थे तो योगी आदित्यनाथ के समर्थकों ने भी बाद में कमर कस लिया। अब पार्टी के भीतर योगी का कद भविष्य में कैसा होगा, ये बताने की जरूरत नहीं है, आप समझ गए होंगे। बीच में उन्हें कुछ हिलाने डुलाने की कोशिशों का क्या हश्र हुआ ये तो आपको मालूम ही है।

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