समुद्र में समाता 12 हजार की आबादी वाला देश, कभी अमेरिका को धमकाया, अब चीन से दोस्ती बढ़ाकर उड़ाएगा ताइवान की नींद?

A country with a population of 12 thousand, which is lost in the sea, once threatened America, will now give Taiwan sleepless nights by increasing its friendship with China?

“जैसा आप कॉप 26 की मीटिंग में देख रहे हैं। हम तुवालू में जलवायु परिवर्तन और समुद्र में जल बढ़ोतरी की वास्तविकता को जी रहे हैं। हम अब भाषणों का इंतजार नहीं कर सकते जब समुद्र का जल स्तर हमारे चारो ओर बढ़ रहा है। कल को सुरक्षित करने के लिए हमें आज ही कठोर फैसले लेने होंगे।”
सोशल मीडिया पर दो साल पहले एक वीडियो खूब वायरल हुआ था। तुवालु के विदेश मंत्री ने ग्लासगो में आयोजित संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में समुद्र में घुटने तक पानी में खड़े होकर भाषण दिया। जिस जगह वो खड़े थे वो कभी सूखा इलाका हुआ करता था। लेकिन जलवायु परिवर्तन की वजह से अब वहां पर पानी भर चुका है। कोफे अपने इस तरीके के जरिए दुनिया और यूएन को संदेश देना चाहते थे कि जलवायु परिवर्तन को नजरअंदाज करने के कितने गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
तुवालु पश्चिम मध्य प्रशांत महासागर में एक द्वीप देश है। जो हवाई और ऑस्ट्रेलिया के बीच स्थित है। यहां एक अंगूठी के आकार की मूंगा चट्टान पर स्थित है, जिसके किनारे पर 9 खूबसूरत द्वीप है। इस जगह का आकर्षण यहां की प्राकृतिक खूबसूरती है। इसकी आबादी लगभग 11,500 है, जो इसे दुनिया के सबसे छोटे देशों में से एक बनाती है। एक पूर्व ब्रिटिश उपनिवेश, इसे 1978 में स्वतंत्रता मिली। ब्रिटिश सम्राट अभी भी देश के प्रमुख है। प्रशांत महासागर के तुवालु द्वीप के नए प्रधानमंत्री की घोषणा हो गई है। देश के पूर्व अटॉर्नी जनरल फेलेटी टीओ को नया प्रधानमंत्री चुना गया है। छोटे प्रशांत द्वीप राष्ट्र में चुनाव शायद ही कभी सुर्खियाँ बनती हैं। लेकिन यहां मामला थोड़ा उलट है और 16 सीटों वाली संसद के सदस्यों वाले तुवालु के चुनाव पर चीन-अमेरिका समेत सभी देशों की नजर थी। तुवालु में हुए बदलाव ने अमेरिका, ताइवान और ऑस्ट्रेलिया की नींद उड़ा दी है।
ताइवान के लिए क्यों जरूरी है तुवालु
आजादी मिलने के बाद तुवालु ने एक ऐसा फैसला लिया जिससे उसके डिफ्लोमैटिक एहमियत काफी बढ़ गई। आजादी मिलने के एक साल बाद 1979 में तुवालु ने ताइवान को मान्यता दे दी। ताइवान को चीन अपना अभिन्न हिस्सा बताता है। तुवालु ताइवान को मान्यता देने वाले 12 देशों में से एक है। मगर नए प्रधानमंत्री के आने के बाद समीकरण बदलने की आशंका है। कहा जा रहा है कि नई सरकार ताइवान को मान्यता देने पर पुनर्विचार कर सकती है और तुवालु चीन की ओर झुक सकता है। प्रशांत महासागर में स्थित नाउरू ने भी हाल ही में अपना समर्थन ताइवान से बदलकर चीन को दे दिया है।
अमेरिका को लीगल एक्शन की धमकी
1997 में जापान के क्वेटो में ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते रखी गई मीटिंग में तय हुआ की सभी देश कॉर्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए अपना योगदान देंगे। इस समझौते को क्योटो प्रोटोकॉल नाम दिया गया। अमेरिका ने इस पर साइन करने से इनकार कर दिया। अमेरिका को कई बार मनाने की कोशिश की जा रही थी लेकिन बात नहीं बन पाई। इससे तुवालु नाराज हुआ और कहा कि अगर इसमें शामिल नहीं होता है तो हम किरिबाती और मालदीव के साथ मिलकर अमेरिका के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करेंगे।
साल 2022 में तुवालु के प्रधानमंत्री कासो नतानो ने ताइवान की यात्रा की और उसके प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताई। लेकिन हालिया वर्षों में जियोपॉलिटिक्स बदलने लगी है। चीन अपना प्रभाव ताइवान को मान्यता देने वाले छोटे द्वीपों में बढ़ा रहा है। ताइवान को मान्यता देने वाले देशों की संख्या में जितनी कमी आएगी। चीन की वन चाइना पॉलिसी को उतना ही ज्यादा फायदा होगा। एक्सपर्ट्स का मानना है कि इस तरह ताइवान चीन के हिस्से के रूप में शामिल करना बीजिंग के लिए आसान हो जाएगा। 2019 में किरिबाती और सोलोमन द्वीप ने ताइवान के साथ अपने राजनयिक संबंध समाप्त कर दिए थे। उस वक्त ताइवान के तत्कालिक विदेश मंत्री जोसेफ वू ने कहा था कि चीन की डॉलर कूटनीति और बड़ी मात्रा में विदेशी सहायता के झूठे वादे की वजह से सोलोमन द्वीप ने ताइवान के साथ रिश्ते तोड़े हैं।
लेखक – अभिनय आकाश

Get real time updates directly on you device, subscribe now.

शयद आपको भी ये अच्छा लगे
उत्तर छोड़ दें

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा।