दुनियाभर में सड़कों के गड्ढ़े छीन रहे हैं लाखों जिंदगियां, क्या इस समस्या का स्थायी हल नहीं है?

Potholes on roads across the world are snatching away millions of lives, isn't there a permanent solution to this problem? ​

हालांकि आतंकवादी गतिविधियों में होने वाली जनहानि से दुनिया के देशों में सड़कों के गड्ढ़ों से होने वाली दुर्घटनाओं और मौतों से तुलना करना एक तरह से उचित नहीं माना जा सकता पर जिम्मेदारों की जरा-सी लापरवाही से सड़क के गड्ढों के कारण होने वाली मौतों का बढ़ता आंकड़ा गंभीर चिंता का कारण बन जाता है। हालांकि आतंकवादियों का उद्देश्य अलग होता हे वहीं सड़कों के गड्ढ़ों की मरम्मत कराकर ठीक करना तो हमारे हाथ में ही होता है। बात थोड़ी अजीब अवश्य लगेगी पर वास्तविकता तो यही है कि देश दुनिया में सड़कों के गड्ढे़ दुनिया की आतंकवादी गतिविधियों पर भारी पड़ रहे हैं। वैश्विक आंकड़ों का विश्लेषण किया जाए तो 2021 में आतंकवादी गतिविधियों के कारण 5226 लोग मारे गये। वहीं दूसरी और अकेले अमेरिका में ही 2021 में सड़कों के गड्ढ़ों के कारण 15 हजार से अधिक मारे गए। इसी तरह से इंग्लैण्ड में 1390, भारत में 3565 और रूस में 431 लोग मारे गए। आतंकवाद के कारण होने वाली मौतों से यह कोई चार गुणा अधिक है।
कमोबेश दुनिया के देशों में आज भी सड़कों पर गड्ढ़ों के कारण दुर्घटना से मौत के आंकड़ों में साल दर साल बढ़ोतरी ही होती जा रही है। केन्द्रीय सड़क व परिवहन मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में तमाम सड़क हादसों में सबसे अधिक मौत सड़कों पर बने गड्ढ़ों के कारण हो रही है। अब सड़क में गड्ढ़ों के कारण मौत की जिम्मेदारी सरकार या स्थानीय प्रशासन से इतर किसी और को दी भी नहीं जा सकती। मौत को अलग कर भी दिया जाए तो सड़कों पर गड्ढ़ों से होने वाले अन्य नुकसान का ही विश्लेषण करें तो साफ हो जाता है कि यह कोई छोटी-मोटी राजस्व हानि नहीं अपितु बड़े नुकसान से भी जुड़ा हुआ है। उदाहरण के तौर पर चेन्नई में कराए गए एक अध्ययन के अनुसार सड़क के गड्ढ़ों के कारण प्रतिदिन 75 करोड़ के राजस्व का नुकसान होता है। यह तो एक बानगी मात्र है और इससे आसानी से कयास लगाया जा सकता है कि सड़क के गड्ढ़े जनहानि और धन हानि दोनों के ही प्रमुख कारण हैं।
ऐसा नहीं है कि सरकारें या दुनिया के देश इस समस्या को लेकर गंभीर नहीं हों पर जो नतीजे साल दर साल देखने को मिलते हैं वह अपने आप में गंभीर है। सड़क के गड्ढ़ों की वैश्विक गंभीरता को इसी से समझा जा सकता है कि जानकारों को मानना है कि प्रतिवर्ष 15 जनवरी को राष्ट्रीय गड्ढ़ा दिवस मनाया जाता है। इंग्लैण्ड में गड्ढ़ों से होने वाले नुकसान पर नागरिकों को मुआवजा देने का प्रावधान है। दूसरी और दुनिया के देशों द्वारा भी सड़कों के गड्ढ़ों के कारण होने वाली दुर्घटनाओं व मौतों को लेकर बड़े-बड़े राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के सम्मेलन, सेमिनार, गोष्ठियां, जनचेतना रैलियां होती रहती हैं तो सड़क निर्माण में लगे इंजीनियरों व अन्य कार्मिकों को शिक्षण प्रशिक्षण दिया जाता है। यह भी साफ है कि गड्ढ़ों के जो प्रमुख कारण हैं वे भी किसी से छिपे हुए नहीं हैं। मोटे मोटे रूप से कहा जाए तो सड़कों की खराब डिजाइन, हल्की सड़क निर्माण सामग्री, सड़क निर्माण मानकों की अनदेखी, सड़कों पर पानी भरने, रखरखाव व देखरेख में लापरवाही, ठेकेदारों व अधिकारियों की लालची प्रवृत्ति, सड़कों की मरम्मत कार्य में लापरवाही, गुणवत्ता पर ध्यान नहीं देने, सड़कों पर पानी की सही निकासी नहीं होने और इसी तरह के कई कारण हैं जिनके चलते सड़कों पर गड्ढ़े बन जाते हैं। देखा जाए तो थोड़ी-सी अनदेखी, लापरवाही और छोटे से लालच के कारण यही सड़कें मौत का कारण बन जाती हैं। इसके साथ ही आम जन की परेशानी का कारण बनने के साथ ही सरकारी धन का नुकसान होता है वह अलग। केवल गड्ढ़ा होने से दुर्घटना में मौत ही नहीं अपितु कितना नुकसान होता है यह किसी से छिपा नहीं है। एक पक्ष यह भी कि गड्ढ़ों के कारण दुर्घटना के साथ अन्य होने वाले नुकसानों को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। वाहनों के कलपुर्जों, टायर आदि को नुकसान, सामान्य आदमी को भी धचकों से होने वाले पीठ आदि के दर्द, बीमार आदमी के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर, ईंधन का नुकसान, समय का नुकसान सहित अनेक ऐसे नुकसान हैं जिनकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती।

पिछले दिनों केन्द्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने सड़क निर्माण में होने वाली लापरवाही के लिए संबंधित इंजीनियर्स व अन्य को जिम्मेदार बनाने, समुचित रखरखाव, ड्रोन से निगरानी और लोगों को टोल नंबर पर शिकायत करने जैसी सुविधाएं या कदम उठाने की पहल की है। इसी तरह से यह प्रावधान भी कई राज्य सरकारों द्वारा किए गए हैं व किए जा रहे हैं कि निश्चित समय सीमा से पहले सड़क क्षतिग्रस्त हो जाती है तो उसकी जिम्मेदारी सड़क बनाने वाले ठेकेदार की होगी। पर इसकी कितनी पालना हो रही है यह किसी से छिपा हुआ नहीं है बल्कि देखने में तो यही आता है कि एक बार सड़क बन जाने के बाद उसका कोई धनी धोरी ही दिखाई नहीं देता और फिर कभी कोई बड़ी दुर्घटना हो जाती है और उसके कारण बवंडर मच जाता है तब जाकर नींद खुलती है।
इसमें कोई दो राय नहीं कि आज देश दुनिया में एक से एक नई तकनीक आ गई है। इसमें सड़क निर्माण की तकनीक भी शामिल है। पानी भरने वाले स्थानों पर सीमेंट कंक्रीट की सड़कें बनने लगी हैं पर ढाक के वही तीन पात दिखाई देते हैं और सड़कों की गुणवत्ता पर आए दिन प्रश्न उठते रहते हैं। हालांकि यह प्रश्न उठाने की बात नहीं बल्कि सामने दिखने वाली बात है। हालात यहां तक हो गए हैं कि टोल सड़कों पर भी सड़कों के हालात अब ज्यादा अच्छे देखने को नहीं मिल रहे हैं। आखिर गड्ढ़ों या अन्य कारणों से किसी भी तरह की जनहानि या धनहानि होती है तो वह राष्ट्रीय नुकसान ही है। इसलिए इस क्षेत्र में कार्य कर रहे सरकारी व गैरसरकारी संस्थाओं को आगे आना होगा और कम से कम कम सड़कों के गड्ढ़ों को तो मौत का कारण नहीं बनने दिया जाना चाहिए। सोचना यह होगा कि किसी जिम्मेदार की छोटी-सी लापरवाही किसी परिवार पर कितना कहर बन कर आती है। केन्द्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के साथ ही राज्यों के सड़क परिवहन मंत्रालयों खासतौर से सड़क निर्माण में जुटी संस्थाओं को दुर्घटनामुक्त सड़कों के निर्माण के साथ ही सड़कों के रखरखाव के प्रति ध्यान देना होगा।
लेखक -डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा(लेखक वरिष्ठ स्तम्भकार हैं)

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