शिवलिंग पर बसा है दुनिया का सबसे बड़ा राज, ऐसा है शिव की सृष्टि का वैज्ञानिक रहस्य!
शिव इस सृष्टि के अधिकर्ता है. वे संहारक हैं और सृजनहार भी. संपूर्ण ब्रह्मांड के चराचर में शिव तत्व व्याप्त है. यह ब्रह्मांड ऊं की ध्वनि में लीन हो रहा है. श्रावण मास में शिव की पूजा का जितना महत्व है उतना ही शिव को आराध्य मानकर उसमें रमने का भी. आइए आज आपको बताते हैं शिवलिंग का एक ऐसा रहस्य जिसे जानकर आपको आश्चर्य होगा कि शिव की सृष्टि का विस्तार कैसा व्यापक है दरअसल, आप सभी ने शिवलिंग की पूजा की होगी. श्रावण मास में आप रोजाना शिवलिंग के दर्शन भी करेंगे और पूजा भी्. लेकिन हम आपको शिवलिंग के बारे खास बातें।
शिवलिंग के तीन हिस्से होते हैं. पहला हिस्सा जो नीचे चारों ओर भूमिगत रहता है. मध्य भाग में आठों ओर एक समान सतह बनी होती है. अंत में इसका शीर्ष भाग, जो कि अंडाकार होता है जिसकी पूजा की जाती है. इस शिवलिंग की ऊंचाई संपूर्ण मंडल या परिधि की एक तिहाई होती है. शिवलिंग दो प्रकार के होते हैं. पहला आकाशीय या उल्का शिवलिंग और दूसरा पारद शिवलिंग।
ये तीन भाग ब्रह्मा (नीचे), विष्णु (मध्य) और शिव (शीर्ष) का प्रतीक हैं. शीर्ष पर जल डाला जाता है, जो नीचे बैठक से बहते हुए बनाए एक मार्ग से निकल जाता है. शिव के माथे पर तीन रेखाएं (त्रिपुंड) और एक बिंदू होता है, ये रेखाएं शिवलिंग पर समान रूप से अंकित होती हैं।
सभी शिव मंदिरों के गर्भगृह में गोलाकार आधार के बीच रखा गया एक घुमावदार और अंडाकार शिवलिंग के रूप में नजर आता है. प्राचीन ऋषि और मुनियों द्वारा ब्रह्मांड के वैज्ञानिक रहस्य को समझकर इस सत्य को प्रकट करने के लिए विविध रूप में इसका स्पष्टीकरण दिया गया है दरअसल, आप सभी लोगों को पता होगा कि दुनिया में शिव की पूजा केवल हिंदू और भारत में ही होती रही.लेकिन आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि शिवलिंग की पूजा कहां-कहां होती रही।
पुरातात्विक निष्कर्षों के अनुसार प्राचीन शहर मेसोपोटेमिया और बेबीलोन में भी शिवलिंग की पूजा किए जाने के सबूत मिले हैं. इसके अलावा मोहन-जोदड़ो और हड़प्पा की विकसित संस्कृति में भी शिवलिंग की पूजा किए जाने के पुरातात्विक अवशेष मिले हैं।
सभ्यता के आरंभ में लोगों का जीवन पशुओं और प्रकृति पर निर्भर था इसलिए वह पशुओं के संरक्षक देवता के रूप में पशुपति की पूजा करते थे. सैंधव सभ्यता से प्राप्त एक सील पर तीन मुंह वाले एक पुरुष को दिखाया गया है जिसके आस-पास कई पशु हैं. इसे भगवान शिव का पशुपति रूप माना जाता है।
ईसा से 2300-2150 वर्ष पूर्व सुमेरिया, 2000-400 वर्ष पूर्व बेबीलोनिया, 2000-250 ईसापूर्व ईरान, 2000-150 ईसा पूर्व मिस्र (इजिप्ट), 1450-500 ईसा पूर्व असीरिया, 1450-150 ईसा पूर्व ग्रीस (यूनान), 800-500 ईसा पूर्व रोम की सभ्यताएं थीं।




