107 साल की उम्र में साथियों के हित के लिए डटा ईमानदार कॉमरेड,अपने बेटे की नौकरी तक न लगवा सका

At the age of 107, an honest comrade stood firm for the welfare of his comrades, but could not even get his son a job.

गोरखपुर/उत्तर प्रदेश। उनकी उम्र 107 साल की है, लेकिन आज भी वह साथी कर्मचारियों के हितों की लड़ाई लड़ने में सबसे आगे हैं। ऑल इंडिया रेलवेमैन फेडरेशन ने 24 अप्रैल को शताब्‍दी समारोह में दिल्‍ली में उन्‍हें सम्‍मानित भी किया। युवा भी उनकी ऊर्जा और जज्‍बे के आगे नतमस्‍तक हो जाते हैं। इनका नाम है केएल गुप्‍ता, वह नेशनल रेलवे मजदूर यूनियन (नरमू) के राष्‍ट्रीय महामंत्री हैं।उन्‍हें उनके साथी 107 साल का युवा कहते हैं। गोरखपुर जिले के खजनी के मूल निवासी और पुर्दिल पुर मोहल्ले में नानी के घर से अपने जीवन की शुरुआत करने वाले के एल गुप्ता आज किसी के परिचय के मोहताज नहीं हैं। उनका जन्‍म अगस्‍त 1917 में हुआ था। उन्होंने अपनी शुरुआती शिक्षा-दीक्षा अपनी नानी के घर पर रहकर पूरी की। गोरखपुर से ही उन्होंने ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई की है। युवावस्था के दिनों में 10 साल तक फौज में नौकरी करने के बाद रिटायरमेंट ले लिया और रोजगार दफ्तर में नौकरी करने लगे। रेलवे में वेकेंसी निकली तो अप्लाई किया और रेलवे के अकाउंट ऑफिस में नौकरी जॉइन कर ली। उसके बाद से ही रेलवे कर्मचारियों के संघर्षों की लड़ाई का जिम्मा और नेतृत्व अपने हाथों में लिया। तब से आज तक वह सिलसिला थमा नहीं। युवावस्था से लेकर आज 107 साल की उम्र में भी वही जोश और जज्बा दिखाई देता है। मंचों से वह आज भी जिस तरह कर्मचारियों में जोश और उत्साह भरते हैं, यह देखकर युवा भी शरमा जाते हैं। केएल गुप्ता ने भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में हुए पहले चुनाव से लेकर अब तक के सभी चुनाव में मतदान किया है। वह आज फिर 2024 लोकसभा चुनाव में भी अपने मतों का प्रयोग करने को आतुर है।
केएल गुप्ता कहते हैं कि सन 1960, 68 और 74 के दौरान हुई हड़ताल में मैं नेतृत्वकर्ता के रूप में शामिल रहा। कुछ साथियों के साथ गोरखपुर जेल में बंद भी रहा। इस दौरान जमकर पुलिस की लाठियां भी खाईं। हर बार नौकरी से हटाया गया, लेकिन कानूनी लड़ाई के बाद फिर बहाली हुई। लेकिन इसका दाग मेरे सर्विस रिकॉर्ड पर पड़ा। इसकी वजह से पेंशन के नाम पर सिर्फ ऐक्‍स ग्रेसिया पेंशन मिलती है जो नाम मात्र की होती है।
ईमानदारी का नतीजा, गरीबी और लाचारी
मीडिया ने जब उनसे,उनके पारिवारिक जीवन के विषय में जानकारी चाही तो उन्होंने रूंधे गले से बताया कि पत्नी की मृत्यु बहुत पहले हो चुकी थी। मैंने शुरुआती जीवन पुर्दिलपुर मोहल्ले में अपनी नानी के घर पर बिताया है। मेरे बच्चे आज भी उसी मकान में रहते हैं और मैं रेलवे विभाग के इस कमरे में। मेरा एक बेटा और दो पोतियां हैं, बहू की भी मौत हो चुकी है। कर्मचारियों के संघर्ष की लड़ाई लड़ने और ईमानदारी का इनाम मुझे यह मिला कि मैं अपने बेटे की नौकरी भी नहीं लगवा सका। बेटा किसी तरह अपना जीवन यापन कर अपनी दोनो बेटियों को पाल रहा है।
वह कहते हैं, आज के महंगाई भरे इस दौर में पोतियों की शादी कर पाना भी संभव नहीं है, क्योंकि दामाद को मैं कार नहीं दे सकता, और बेटे की इतनी क्षमता नहीं। लेकिन फिर भी मुझे संतोष है कि मैंने पूरी ईमानदारी से कर्मचारियों के संघर्षों की लड़ाई लड़ी है जो मैं जीवनपर्यंत आखिरी सांस तक जारी रखूंगा। आज भी मेरे लिए मेरे बच्चों के साथ कर्मचारियों का परिवार भी मेरा अपना है। रही बात राजनीति की तो मैं कभी किसी पार्टी में बंध कर नहीं रहा। हां लोकतंत्र के महापर्व में मैंने भारतीय इतिहास में हुए पहले चुनाव से लेकर अब तक हर बार मतदान किया है। ईश्वर ने चाहा तो 2024 चुनाव में भी मेरे मत का प्रयोग होगा।
उनके साथी और यूनियन में मीडिया प्रभारी ओंकार सिंह कहते हैं कि मेरी जानकारी में जब से गुप्ता सर ने कर्मचारियों की लड़ाई लड़ने की शुरुआत की है, तब से लेकर अब तक उन्हें कभी पीछे हटते नहीं देखा। आज भी वह वही कर रहे हैं चाहे उनकी उम्र 107 साल क्यों ना हो गई हो। उम्र के इस पड़ाव पर भी 24 अप्रैल 2024 को दिल्ली में आयोजित एआईआरएफ के शताब्दी समारोह में उन्हें सम्मानित किया गया है। यह उनकी निष्ठा और ईमानदारी का ही फल है। उनकी दिनचर्या के विषय में जब पूछा गया तो उन्होंने बताया कि सुबह की शुरुआत गर्म पानी और एक कप काली चाय से होती है। उसके बाद नाश्ते में दलिया और फिर दिन में दो चपाती, सब्जी और दाल। शाम को दो चपाती और दाल जो किसी भी कर्मचारी या संगठन के कार्यकर्ताओं के घर से आ जाता है। बस यही उनका जीवन है।

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