मजबूर नहीं मजबूत सरकार…सहयोगियों के सामने मोदी ने खींची लक्ष्मण रेखा, इन विभागों से ही करना पडे़गा संतोष
चुनाव परिणाम आने के बाद से ही ऐसा प्रस्तुत किया जा रहा है कि देश के अंदर ही नहीं बीजेपी के अंदर भी भूचाल आने वाला है। ऐसे दावे और खबरें आप लगातार देख रहे होंगे कि पीएम मोदी बड़े दबाव में हैं। अब वो कोई कड़ा फैसला नहीं ले सकते क्योंकि सरकार की चाबी नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू के हाथों में है। दोनों पार्टी अगर सपोर्ट हटा लेगी तो बीजेपी की सरकार गिर जाएगी। मीडिया में भी ऐसा नैरेटिव बनाने की कोशिश की जा रही है। अटल बिहारी वायपेयी के 24 पार्टियों वाली गठबंधन सरकार से इसकी तुलना की जा रही है। उस दौर में पार्टियां इतना दबाव बनाकर रखती थी कि न तो अटल बिहारी वाजपेयी, न ही आडवाणी और न ही बीजेपी की पूरी मशीनरी कोई कड़े और बड़े फैसले लेने में सक्षम नहीं हो पाई। एक कॉमन मिनिमम प्रोग्राम के सहारे सरकार चलाना पड़ा। डेवलमपेंट का मुद्दा, महंगाई, बेरोजगारी से बचने के उपाय जैसे कार्य शुरू हुआ था।
ऐसा बताया जा रहा है कि पीएम मोदी का आगे का प्लान यूसीसी और अन्य बड़े फैसले नहीं हो पाएंगे क्योंकि बहुमत मोदी के पास नहीं है। वन नेशन वन इलेक्शन भी लागू नहीं हो पाएगा। धारणा बनाई जा रही है कि पीएम मोदी अब बैकफुट में आ जाएंगे। वो मंदिरों में नहीं जाएंगे और पहले के प्रधानमंत्रियों की तरह इफ्तार पार्टी में नजर आएंगे। इसके साथ ही दावा किया जाने लगा कि बीजेपी को बहुमत नहीं मिला तो बार्गेनिंग करने वाली पार्टियां इस बार खुलकर अपनी मांगे रखेंगी। जिसके कारण बीजेपी बड़े फैसले नहीं ले पाएगी। लेकिन सारे के सारे अटकलों पर विराम लगता नजर आ रहा है। जैसे मानों प्रधानमंत्री ने कह दिया कि मोदी के ऊपर कोई दबाव बना नहीं सकता। कहा जा रहा है कि बीजेपी ने सहयोगियों के सामने लक्ष्मण रेखा खींच दी है।
गृह मंत्रालय, वित्त मंत्रालय, रक्षा मंत्रालय और विदेश मंत्रालय जैसे विभागों के साथ कोई समझौता नहीं करेगी। इसके साथ ही स्पीकर के पद पर भी पार्टी कोई समझौता नहीं करने वाली है। बीजेपी टीडीपी को डिप्टी स्पीकर पोस्ट दे सकती है। टीडीपी ने वित्त और आईटी मंत्रालय जैसे विभागों की मांग की थी। लेकिन टीडीपी को सिविल एविएशन, स्टील जैसे संभावित मंत्रालय दिए जा सकते हैं। इंफ्रा, कल्याण, कृषि विभाग बीजेपी अपने पास रखेगी। जदयू के लिए पंचायती राज, ग्रामीण विकास जैसे मंत्रालय दिए जा सकते हैं। शिवसेना के लिए भारी उद्योग की संभावना है। 2014 में देश में सत्ता में आने के बाद से मोदी किसी के दवाब में नहीं आए। गुजरात में सीएम रहते हुए भी उनकी कार्यशैली इसी तरह की नजर आई। गुजरात दंगा के आरोपों से लेकर अमेरिका के वीजा नहीं देने तक सभी से मोदी ने अपनी शैली में ही निपटा। यूरोप और अरब दुनिया के कई देशों ने भी दबाव बनाया लेकिन कुछ काम नहीं आया।